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श्री ओमकारेश्वर महादेव मंदिर में पंक्तिबद्ध |
चौबीस खंभा माता मंदिर चौराहे पर चाय पीने के बाद हम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार श्री ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन के लिए निकल पड़े। आगरा-मुंबई हाईवे से इंदौर तक जाना था, जहां से श्री ओंकारेश्वर के लिए अलग रास्ता निकलता है। हाईवे के किनारे थोड़ी दूरी पर स्थित पहाड़ियों की ओट से सूर्योदय का दृश्य मन मोह रहा था। धान की कटाई हो चुकी थी, तो खेत लगभग खाली थे। कुछ में सब्जियां आदि लगाई गई थीं। कुछ जगहों पर कपास के खेत भी दिखाई दिए। बचपन में हमने अपने इलाके में कपास के कुछ पौधों व छोटे पेड़ों को देखा था, जिनमें फूल कम ही हुआ करते थे और जो होते थे वे थोड़े बड़े होते थे। यह कपास उससे अलग था। पौधे छोटे थे, फूल खूब लगे हुए थे और छोटे-छोटे फलों में रूई तैयार हो रही थी। इंदौर से जब हम श्री ओंकारेश्वर यानी खंडवा जिले की तरफ बढ़े, तब मिर्च की खेती भी दिखाई दी। कई जगहों पर सड़क किनारे लोग लाल मिर्च बेच भी रहे थे। मन तो खूब हुआ रुककर मिर्च के बारे में जानकारी हासिल करने और कुछ खरीदने का, लेकिन अपने मतलब की नहीं थी, इसलिए मस्तिष्क का निर्णय भारी पड़ गया और हम उन ठीहों को निहारते हुए आगे बढ़ते गए।
रास्ते में भैरव घाटी आई, जिसके मोड़ काफी तीखे थे। जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। हमारे सारथी
अभिषेक यादव जी ने बताया कि घाटी के तीखे मोड़ और संकरी सड़क से निजात पाने के लिए बिल्कुल पास से ही सीधी सड़क बनाई जा रही है। हमने देखा भी कि सड़क निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। इंदौर की प्यास बुझाने के लिए श्री ओंकारेश्वर से इंदौर तक बड़ी पाइपलाइन डाली गई है, जिससे नर्मदा नदी का पानी मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी तक पहुंचता है। पाइपलाइन लगभग पूरे रास्ते हमारे समानांतर चलती रही। बीच में रेलवे की मीटरगेज लाइन दिखाई दी। वह रेललाइन अब भी प्रचलन में है और यात्री ट्रेनें इंदौर के पास के एक स्टेशन से खंडवा तक जाती हैं।
अभिषेक जी काफी सुलझे हुए इंसान व कामयाब कारोबारी हैं। उनका टूर एंड ट्रैवल का काम तो है ही, साथ ही और भी कई काम करते हैं। राजनीति में भी रूचि रखते हैं, लेकिन अपना पक्ष जहां तक संभव हो जाहिर नहीं होने देते। मध्य प्रदेश की राजनीति पर बात तो होनी ही थी। मैंने छेड़ दिया- मामाजी कैसा कर रहे हैं। अभिषेक जी ने हंसते हुए कहा- अच्छा कर रहे हैं सर। ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़ दें, तो उन्हें भाजपा में कोई टक्कर नहीं देने वाला। हालांकि, वे कह चुके हैं कि इस बार वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। ...और राहुल जी की यात्रा, जो दो दिनों पहले ही उज्जैन से गुजरी है... मैंने बीच में काटते हुए कहा। अभिषेक जी खुलकर हंसे और कहा, एमपी में तो उनका कुछ नहीं होने वाला। पार्टी भी अच्छी पोजीशन में नहीं है। धड़ों में बंटी हुई है। उत्तर प्रदेश व बिहार में यादवों का राजनीति में अच्छा-खासा हस्तक्षेप है, लेकिन मध्य प्रदेश में कोई बहुचर्चित यादव चेहरा नहीं दिखाई देता, ऐसा क्यों? अभिषेक जी कहते हैं, दिखाई नहीं देता, लेकिन मंत्री तो हैं। आधा दर्जन से ज्यादा विधायक भी हैं। कई सीटों पर यादव निर्णायक स्थित में हैं, लेकिन यूपी-बिहार की तरह शोर नहीं मचाते।
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श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के भीतर की नक्काशी |
खेती-बाड़ी, आजीविका व रहन-सहन के मुद्दे पर थोड़ी-थोड़ी बातें होती रहीं और रास्ता कटता रहा। करीब 10 बजे हम श्रीओंकारेश्वर पहुंच गए। नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर एक समृद्ध गांव जहां भगवान भोलेनाथ की कृपा प्रत्यक्ष दिखाई देती है। श्री ओंकारेश्वर और आसपास की पूरी अर्थव्यवस्था आस्था पर आधारित है।
अभिषेक जी ने हमें श्री ममकेश्वर मंदिर के पास छोड़ा और गाड़ी से उतरते ही पंडे पीछे पड़ गए। मैंने उन्हें मीठे शब्दों में टालने की कोशिश की, लेकिन वे दर्शन कराने के लिए न्यूनतम दक्षिणा की शर्त पर उतारू हो गए। आखिरकार मुझे कहना ही पड़ा कि भक्त और भगवान के बीच किसी तीसरे का क्या काम। हम खुद दर्शन कर लेंगे और जितने भी शुद्ध-अशुद्ध मंत्र आते हैं, उन्हीं से भगवान की आराधना कर लेंगे। अभिषेक जी ने बता दिया कि सीढि़यों से नीचे उतर जाइए। मोटरयुक्त नौकाएं मिलेंगी, उन्हीं से नर्मदा पार कर लीजिएगा। हमें लगा कि लोटा खरीद लेना चाहिए, जिससे श्री ओंकारेश्वर महादेव को जल चढ़ा लेंगे। तांबे का लोटा खरीदा और एक छोटा सा केन भी, जिसमें पवित्र नर्मदा का जल संग्रहीत करने की इच्छा थी। नाव जब चली तो हमने लोटे में नर्मदा जल भरने का प्रयास किया, लेकिन धारा इतनी तेज थी कि अपने साथ लोटे को भी बहा ले गई।
खैर, तट पर उतरते ही पूजन सामग्री वाली दुकान से तीन लोटे मुफ्त में मिल गए, जिन्हें जल चढ़ाने के बाद लौटा
देना था। पूजन सामग्री की दुकान पर फिर एक बार पंडों ने दर्शन और संकल्प करवाने का प्रस्ताव दिया, जिसे हम विनम्रता से खारिज करते रहे। श्री ओंकारेश्वर मंदिर में लाइन लंबी थी, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। हमें उम्मीद थी कि आधे घंटे में हमारी बारी आ जाएगी। हुआ भी ऐसा ही। जलाभिषेक के लिए करघा लगा हुआ था, लेकिन कम ही लोग उस करघे में जल अर्पित कर रहे थे। सब ने प्रत्यक्ष रूप से श्री ओंकारेश्वर महादेव को जल अर्पित करने का संकल्प ले रखा था। नर्मादा नदी के तट पर स्थित मंदिर बाहर से जितनी भव्यता लिए है, उससे ज्यादा भव्यता अंदर के शिलास्तंभों पर बारीकी से उकेरी गईं कलाकृतियों पर दिखाई देती हैं, जो सहज ही मन मोह लेती हैं।
गर्भ गृह अमूमन सभी जगह छोटा होता है, यहां भी कुछ ऐसा ही था। कुछ लोगों ने बताया कि पहले भगवान ओंकारेश्वर महादेव को छूने व जल चढ़ाने की इजाजत थी, लेकिन अब वहां शीशे की दीवार खड़ी कर दी गई है। क्षण मात्र दर्शन और चंद बूंदे अरघे में चढ़ाने का मौका मिलता है और पुजारीगण दूसरों को मौका देने की बात कहकर आगे बढ़ा देते हैं। प्रभु के दरबार में चूंकि सबको मत्था टेकने का मौका मिलना चाहिए, इसलिए क्षण मात्र भी अपने हिस्से आना बेहद सौभाग्य की बात है। दर्शन से तृप्त होकर हम बाहर निकले। अभिषेक जी ने बता दिया था कि झूला पुल से आप लौट सकते हैं और श्री ममकेश्वर महादेव के दर्शन के बाद वापस उज्जैन के लिए निकल चलेंगे।
हम झूला पुल की तरफ बढ़े तो एक महिला को ताजे अमरूद बेचते देखा। थोड़ा चकित रह गया, जब जाना कि उनके पास तीन पाव के बाट थे। उन्होंने किसी प्रकार दो किलो अमरूद तौला। अब समस्या आई कि हमारे पास थैली नहीं थी। खैर, पास के एक दुकानदार ने थैली उपलब्ध करवा दी। श्री ममकेश्वर महादेव के पहले एक दुकान पर प्रसाद खरीदने के बाद अपने सारे सामान वहीं रख दिया। दुकान चलाने वाली महिला ने बताया कि श्री ममकेश्वर व श्री ओंकारेश्वर मिलकर एक ज्योतिर्लिंग बनते हैं।
श्री ममकेश्वर महादेव के दर्शन के लिए ज्यादा लंबी कतार नहीं थी। लगभग 15 मिनट में हमारा नंबर आ गया।
वहां न सिर्फ शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मौका मिला, बल्कि बिलपत्र व अन्य पूजन सामग्री भी तसल्ली से चढ़ा पाया। श्री ओंकारेश्वर व श्री ममकेश्वर महादेव के दिव्य दर्शन व पूजन-अर्चन का आलौकिक आनंद प्राप्त कर हम करीब दो बजे के आसपास फारिग हुए। लौटते वक्त श्री ओंकारेश्वर के पास ही एक लाइन होटल में अभिषेक जी ने गाड़ी रोक दी। बहुत लजीज भोजन मिला, वह भी पूरी सफाई के साथ। उज्जैन से लौटते वक्त नींद सभी लोगों पर हावी होने लगी थी। अभिषेक जी को छोड़कर सभी ने झपकी ली। शाम करीब साढ़े पांच बजे हम उज्जैन लौट आए... (क्रमशः)