तीन चौथाई: देशकाल: डरो ‘भगवान’, अपने अस्तित्व के लिए डरो! (भाग-3)
हमारी
नई पीढ़ी के लोग अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर और सरकारी सेवक तो बन जा रहे हैं,
लेकिन समाज में अच्छे इंसानों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है। सड़क
पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को देखने वाले लोगों की संख्या तो बहुत रहती है,
लेकिन बहुत देर बाद कोई ऐसा इनसान वहां पहुंचता है जो पीड़ित को हॉस्पिटल
ले जाने की पहल करता है। छेड़खानी से मुंह फेरने वाले लोगों की संख्या
ज्यादा हो गई है। असत्य के विरोध में आवाज जब-जब दबी है, तब-तब असत्य
विभिन्न रूपों में सामने आया है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और गुंडागर्दी
जैसे तत्व तभी विकराल होते जाते हैं, जब सत्य और प्रतिकार की सत्ता पर संशय
के बादल मंडराने लगते हैं...