तीन चौथाई
आम आदमी का खास ब्लॉग
गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024
श्रीटटिया स्थान...जहां लताएं करती हैं साधना और उनकी सेवा करते हैं संन्यासी
गुरुवार, 1 जून 2023
कैसे मान लूं... आप नहीं रहे तुषार भाई....
शनिवार, 18 फ़रवरी 2023
श्री महाकाल से एकाकार....
पांच दिसंबर, 2022 को श्री ओंकारेश्वर व श्री ममकेश्वर के दर्शन के बाद मां क्षिप्रा की आरती में हम लोग शामिल हुए। वापसी में आदिशक्ति हरसिद्धि माता की आरती में भी शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जीवन में बहुत कम ही मौके आते हैं, जब सुबह, दिन व शाम शानदार हो। यह वही मौका था, लेकिन छह दिसंबर का ब्रह्म मुहूर्त तो अनंत कालराशि के लिए अविस्मरणीय होने वाला था। माताजी, देवांश, श्रीमतीजी व मैं महाकाल की आरती के लिए अंतःकरण से रोमांचित थे। जल्दी सोने का उपक्रम शुरू तो हुआ, लेकिन किसी को नींद नहीं आई। झपकी जरूर आई होगी। रात दो बजे से पहले ही हम सभी उठ गए और नहाकर तैयार हो गए। तीन बजे से पहले हम गेट नंबर तीन पर पहुंच गए, लेकिन वहां पता चला कि हमें गेट नंबर दो से प्रवेश करना है।
गेट नंबर दो बड़ा गणेश मंदिर के पास है, जबकि गेट नंबर तीन भारत माता मंदिर के पास। भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम सभी गेट नंबर तीन के पास पहुंच गए। माताजी आस्टोपोरोसिस की मरीज हैं, चलने फिरने में थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन श्री महाकाल ने उन्हें अलौकिक ऊर्जा प्रदान कर दी। प्रातः तीन बजे से करीब साढ़े चार बजे तक इंतजार के बाद श्री महाकाल दरबार में प्रवेश का सौभाग्य मिला। लाइन में जो लोग हमसे पीछे थे वे आगे निकल गए और पहली या दूसरी पंक्ति में बैठ गए। हमें पिछली पंक्ति में जगह मिली। श्री महाकाल स्नान, शृंगार व आरती का सजीव प्रसारण सामने लगी स्क्रीन पर भी हो रहा था। कभी हम सीधे महाकाल को देखने का प्रयास करते, तो कभी स्क्रीन पर देखते।
भस्म आरती के लिए आए सभी भक्तों में अद्भुत श्रद्धा व ऊर्जा थी। भगवान का स्नान हुआ। दूध से, जल से, घृत से.... स्नान की विधियां पूरी हुईं तो शृंगार का कार्यक्रम शुरू हुआ। पुजारियों का दल शृंगार में परांगत था। श्री महाकाल स्तुति के बीच शृंगार का कार्यक्रम करीब आधे घंटे या उससे कुछ ज्यादा समय तक चला और जब पूरा हुआ तो श्री महाकाल का मुस्कुराता हुआ मुख मन-मस्तिष्क में इतनी ऊर्जा और अलौकिक सुख भर गया, जिसका वर्णन शब्दातीत है।
पुजारीजन भक्तों से शांत बैठने और वीडियो न बनाने की अपील करते हैं, लेकिन भक्त... श्री महाकाल को खुद में बसा लेना चाहते हैं... उनमें समा जाना चाहते हैं... कोई मंत्र पढ़ रहा है... कोई जयकारे लगा रहा है.... कोई आंख बंद करके श्री महाकाल से निकलने वाली आशीर्वाद रूपी तरंगों को अपनी आध्यात्मिक तरंगों से जोड़ लेना चाहता है। पुजारी जी की आवाज थोड़ी ऊंची हुई, तो लोग शांत हो गए। पुजारी जी ने घोषणा की, अब भस्म आरती होगी... महिलाएं न देखें... पर्दा कर लें...। भक्त जो कुछ भी श्री महाकाल को अर्पित करना चाहते हैं, उसे झोले में डाल दें...। श्रीमती जी ने पूछा- महिलाएं भस्म आरती क्यों नहीं देख सकतीं.... मैंने अपने अल्प अध्यात्म ज्ञान से कहा कि श्मशान विधि का नियम यहां भी लागू होता होगा। शास्त्रो में श्मशान में महिलाओं का प्रवेश निषिद्ध माना गया है, लेकिन मैं इसे तर्क के साथ प्रमाणित नहीं कर सकता।
श्मशान के पुजारी
जिन्हें अघोर भी कहा जाता है, भस्म की पोटली के
साथ गर्भगृह में दाखिल हुए। उसी पोटली से भस्म आरती शुरू हुई। घंटा-घड़ियाल और
डमरू की मिश्रित ध्वनि के बीच भस्म आरती... यह संदेश कि सबकुछ शिव का है और सब शिव
के हैं। वह दानी हैं, सर्जक हैं,
पालक हैं, संहारक हैं और सृष्टि के समस्त कार्यविधि के नियंता भी...
जीवन के शोक और आनंद का अंत मसान है, जहां के भस्म को वह अष्टांग में धारण कर भस्मीभूत होने का संदेश देते हैं...
यही जीवन सत्य है... सृष्टि और विनाश का सत्य है... कुछ भी स्थायी नहीं... न सुख.. न दुख...
भस्म आरती के समापन के बाद महिलाओं को पर्दा हटाने की इजाजत दे दी गई। इसके बाद अन्य आरतियों का सिलिसला शुरू हुआ। एक समय ऐसा आया कि सारी बत्तियां बंद हो गईं और गर्भगृह में आरती की लौ के बीच श्री महाकाल के दर्शन हुए... इस दृश्य ने देवी सती के कायात्याग और शिव तांडव के प्रारंभ की परिस्थियों का आभास कराया। भक्तों के चढ़ावे श्री महाकाल तक पहुंच चुके थे। उनके भोग लगे। अज्ञानतावश हम कुछ नहीं ले जा पाए थे... शायद उनकी यही इच्छा रही होगी... आरती समाप्त हो गई, लेकिन मन वहां से रत्ती भर खिसने के लिए तैयार नहीं था... उसी समय श्री महाकाल के जलाभिषेक की व्यवस्था हो गई। हम सभी ने श्री महाकाल को जल अर्पित किए। उनके स्पर्श से धन्य हो गए...
मस्तिष्क पर अमिट है। स्मृतियां जीवन को रोमांचित करती रहती हैं... ऊर्जा प्रदान करती हैं... शायद यही ऊर्जा जीवन को गति देती है...
जय श्री
महाकाल... आपकी जय हो... प्राणियों में सद्भावना हो... विश्व का कल्याण हो...
रविवार, 1 जनवरी 2023
क्षिप्रा माता की संध्या आरती व शक्तिपीठ हरसिद्धि माता
नगाड़ा एक बच्चा बजा रहा था और घंटी एक वयस्क। जब वादन का पहला दौर खत्म हुआ तो घंटी बजाने वाले ने बच्चे पर रौब जमाने का प्रयास किया और कहा कि तुम सही से नगाड़ा नहीं बजा रहे हो। दोनों में काफी देर तक बहस हुई, लेकिन बच्चा अपनी जिद पर अड़ गया। नतीजतन, घंटी बजाने वाले ने नाराज होकर मैदान छोड़ दिया। घंटी बजाने की जिम्मेदारी किसी और ने संभाली। थोड़ी देर बाद वादन का दूसरा दौर शुरू हुआ और इसी बीच आरती भी शुरू हो गई।
बुधवार, 28 दिसंबर 2022
श्री ओंकारेश्वर व श्री ममकेश्वर महादेव
श्री ओमकारेश्वर महादेव मंदिर में पंक्तिबद्ध |
श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के भीतर की नक्काशी |
हम झूला पुल की तरफ बढ़े तो एक महिला को ताजे अमरूद बेचते देखा। थोड़ा चकित रह गया, जब जाना कि उनके पास तीन पाव के बाट थे। उन्होंने किसी प्रकार दो किलो अमरूद तौला। अब समस्या आई कि हमारे पास थैली नहीं थी। खैर, पास के एक दुकानदार ने थैली उपलब्ध करवा दी। श्री ममकेश्वर महादेव के पहले एक दुकान पर प्रसाद खरीदने के बाद अपने सारे सामान वहीं रख दिया। दुकान चलाने वाली महिला ने बताया कि श्री ममकेश्वर व श्री ओंकारेश्वर मिलकर एक ज्योतिर्लिंग बनते हैं।
शनिवार, 24 दिसंबर 2022
श्री महाकाल और चौबीस खंभा माता
चार दिसंबर, 2022 को अवंतिकानाथ
श्री महाकाल के प्रथम अलौकिक दर्शन और श्री महाकाल लोक की भव्यता देख प्रफुल्लित
मन से हम सभी जल्दी सो गए। पांच दिसंबर को सुबह करीब साढ़े चार बजे उठे और जल्दी-जल्दी
तैयार होने लगे। पांच बजे फोन मिलाया तो अभिषेक यादव जी भी तैयार हो रहे थे। आधे
घंटे उनका फोन आया कि होटल के पास जाम न लग जाए, इसलिए मैंने गाड़ी चौराहे पर
पार्क कर दी है। पास में ही मंदिर है, किसी से पूछ लीजिएगा बता देगा। चौबीस खंभा माता मंदिर के पास मां, पत्नी व देवांश...
पुरुष सदस्य, यानी मैं और
देवांश तैयार हो चुके थे, तो सोचा यात्रा से पहले थोड़ी-थोड़ी चाय पी ली जाए। तैयारियों
के बीच उस चौराहे और मंदिर का नाम भूल गया, जिसके बारे में अभिषेक जी ने बताया था।
अपने होटल से बाहर निकला, तो एक दुकान पर कुछ लोग खड़े दिखाई दिए। मैंने देवांश को
उन लोगों से बारह खंभा माता मंदिर के बारे में पूछने को कहा। बताने वाले भी काफी
दिलचस्प थे। उन्होंने उल्टा सवाल दाग दिया, तुम्हें जाना कहां है। बारह खंभा माता
मंदिर या चौबीस खंभा माता मंदिर। देवांश दुविधा में दिखाई दिए, तो पीछे से मैंने कहा-
कुछ श्योर नहीं हूं। ऐसा कोई मंदिर है, आप ही बता दीजिए... प्लीज।
मेरे बैकफुट पर आता देख उन
सज्जन का अंदाज-ए-बयां और दिलचस्प हो गया। अमां यार, बारह खंभे क्यों घटा दिए भाई।
उनका खंभा तो मुगलों व अंग्रेजों तक नहीं तोड़ पाए और तुम सीधा बारह खंभा कम कर दिए
भाई यार। ये तो ठीक नहीं है भाई यार... इससे पहले कि वह रौ में कुछ और कह पाते, एक
अन्य सज्जन ने बीच में ही कहा- आप नीचे उतर जाओ और दाएं मुड़ जाना। वहीं माता का
मंदिर है। सुबह की शुरुआत दिलचस्प हुई थी। माता मंदिर के पास पहुंचा तो अभिषेक जी
से मुलाकात हुई। हम चौबीस खंभा माता मंदिर के पास ही खड़े थे। मंदिर किसी पुराने किले
का द्वार जैसा था, जिसके ऊपर के हिस्से थोड़े क्षतिग्रस्त हो गए थे। बड़ा सा ग्लो
साइनबोर्ड लगा हुआ था, जिसके कारण हम सुबह उस क्षतिग्रस्त हिस्से को नहीं देख पाए।
पास में ही एक बुजुर्ग चाय
की टपरी लगाए हुए थे। सोचा, जबतक महिलाएं गाड़ी तक पहुंचती हैं, तबतक थोड़ी-थोड़ी
चाय पी ली जाए। अमूमन फीकी चाय बनाने में दुकानदार ना-नुकुर करते हैं, लेकिन वे एक
कप फीकी चाय बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। चाय भी लाजवाब थी। दो कप लगातार
पी ली। फ्लास्क भरवा लिया और देवांश की मां भी चाय पीकर खुश हो गईं। वह मुझसे
ज्यादा चाय की शौकीन हैं। चाय पीने के क्रम में बुजुर्गवार ने बताया कि चौबीस खंभा
माता मंदिर की महिमा का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि महाराज विक्रमादित्य
भी महाष्टमी के दिन के भंडारे का प्रसाद खुद पकाते थे। उन्हें बड़ी माता व छोटी
माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। वह परंपरा आज भी कायम है। आज भी जिले के कलेक्टर
महाष्टमी के दिन खुद भंडारे का प्रसाद बनाते हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र, दोनों
में। पहले यही श्री महाकाल मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार होता था, लेकिन अब इसके
पीछे उज्जैन का मुख्य बाजार, यूं कहें मंडी बस गई है।
हमें ओंकारेश्वर व ममकेश्वर
महादेव के दर्शन की जल्दी थी। श्री ओंकारेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग में
शुमार हैं। अभिषेक जी ने बताया कि दोपहर में श्री ओंकारेश्वर महादेव का कपाट एक
घंटे के लिए बंद हो जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि हम जल्दी वहां पहुंच जाएं।
निकलते थोड़ी देर हो गई थी और कुछ दूर तक सड़क भी खराब थी, इसलिए पहुंचने में 10
बज गए। बीच में अभिषेक जी से मध्य प्रदेश की संस्कृति और राजनीति पर लंबी वार्ता
हुई, जिस पर अगली कड़ी में चर्चा करेंगे। फिलहाल, इतना कि चौबीस खंभा माता मंदिर के
बारे में गूगल पर जानकारी हासिल करने का प्रयास किया तो कुछ ज्यादा जानकारी हासिल
नहीं हो सकी। महाराज विक्रमादित्य के काल व श्री महाकाल मंदिर के इतिहास में साम्य
को लेकर मतभेद सामने आया, लेकिन एक तथ्य ज्यादातर जगहों पर समान मिला कि मंदिर की
दोनों माताएं महामाया व महाल्या हैं। शक्ति स्वरूपा दोनों माताओं को श्री महाकाल
वन और नगरी का रक्षक माना जाता है। हम इतिहास और आस्था की तुलना नहीं कर रहे,
क्योंकि जब भी ऐसी स्थिति आएगी इतिहास को हारना होगा। जन आस्था के आगे इतिहास कई
बार बौना पड़ जाता है। वैसे भी, सनातन संस्कृति व परंपरा इतनी पुरानी और विशाल है
कि कागज के पन्नों में उन्हें दर्ज कर पाना कभी भी सहज नहीं हो पाएगा। इसीलिए,
हमारे वेद जैसे पुरातन ग्रंथों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति यानी श्रव्य यानी
सुना हुआ। हमारी परंपरा व आस्था की जड़ें कितनी गहरी हैं, उसका अंदाजा इस बात से
लगाया जा सकता है कि कई आक्रांताओं के बावजूद यह हजारों हजार साल पुरानी श्रुति
परंपरा न सिर्फ पूरी आन-बान-शान से जिंदा है, बल्कि पुष्पित-पल्लवित हो रही है... (क्रमशः)
रविवार, 18 दिसंबर 2022
एक साध का पूरा होना... श्री महाकाल कृपा बनाए रखें...!
श्री महाकाल दरबार |
श्री महाकाल लोक |
श्री महाकाल लोक |
शुक्रवार, 22 जुलाई 2022
अंकों की दौड़ और जीवन के
अनुभव
-कुणाल देव-
सीबीएसई 10वीं व 12वीं के परीक्षा परिणाम आ चुके हैं। बच्चे उत्साहित हैं और उनसे भी ज्यादा खुश हैं उनके माता-पिता व परिजन। यह बहुत स्वभाविक भी है। हम में से ज्यादतर जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, वहां हमारी पीढ़ी तक प्रादेशिक शिक्षा बोर्ड का ही बोलबाला था। समुद्र जैसा पाठ्यक्रम, स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी और बहुत ही कंजूसी के साथ मूल्यांकन तब प्रादेशिक शिक्षा बोर्ड की पहचान हुआ करती थी। सारा दोष व्यवस्था पर मढ़ देना अर्धसत्य होगा। हम में से ज्यादतर लोग बेफिक्र भी कुछ ज्यादा ही होते थे। माता-पिता की अपेक्षा भी कुछ ज्यादा नहीं थी। मैट्रिक व इंटर की परीक्षा पास होने को ही बड़ा गौरव मान लेते थे। जिनके बच्चों ने फर्स्ट डिवीजन हासिल कर लिया, वे तो बल्लियों उछल जाते थे।
मैट्रिक की परीक्षा शिक्षा
का पहला फिल्टर होता था। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले किसान परिवार के ज्यादातर
बच्चे अर्थाभाववश या स्वभावश किताबों का झोला खूंटी में टांगकर खेतों की तरफ निकल
पड़ते थे। इंटरमीडिएट में नाम लिखाने वाले छात्र दो प्रकार के होते थे-एक तो वह
जिन्हें वास्तव में पढ़ाई से लगाव था और दूसरा वह जिनके माता-पिता चाहते थे कि
बच्चा आगे पढ़ ले। इंटरमीडिएट के दूसरे फिल्टर में दूसरे प्रकार के छात्र छंट जाते
थे और खेतों या दुकानों की ओर लौटकर पैतृक विरासत संभालने लगते थे। पहले वाले
छात्र थर्ड और सेकेंड डिवीजन के साथ आगे की पढ़ाई जारी रखते थे। कुछ फर्स्ट डिवीजन
भी ले आते थे, लेकिन उनकी संख्या नगण्य होती थी। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद ज्यादातर
छात्र प्रतियोगिता परीक्षाओं में लग जाते थे। यहीं से शुरू हो जाता था क्लर्क से
कलक्टर बनने का सफर। जो कलक्टर बन गए वे तो उदाहरण हो ही जाते थे, जो सफल नहीं हो
पाए उनकी भी कहानियां कई मौकों पर लोग पूरे जोश के साथ सुनाई जाती थीं।
आज प्रादेशिक शिक्षा बोर्ड
से पढ़ाई करने वालों के बच्चे सीबीएसई व आइसीएसई से संबद्ध स्कूलों से पढ़ाई कर
रहे हैं। ये बोर्ड मूल्यांकन में कंजूसी कतई नहीं करते और एक तरह से स्वस्थ
प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा ही देते हैं। बढ़ती आबादी व सीमित होते संसाधनों के बीच
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की जरूरत भी है, वर्ना प्रतिभा के मूल्यांकन का विकल्प ही
क्या है। सच कहूं तो आजकल के बच्चे भी हमारी पीढ़ी से ज्यादा प्रतियोगी हो गए हैं
और कई बार महसूस होता है कि शिक्षा व करियर की कड़ी प्रतियोगिता ने उन्हें जीवन के
व्यावहारिक पहलुओं से थोड़ा जुदा कर दिया है। शहरों, खासकर महानगरों में रह रहे छात्रों
की दुनिया कीताबों से शुरू होती है और सोशल मीडिया पर खत्म हो जाती है। राशन की
दुकान से लेकर खेत-खलिहान, नदी-नाले व पर्वत-पठार तक के बारे में उनका अनुभव इन्हीं
माध्यमों पर आधारित है। इन्हीं अवस्थाओं ने ग्राम्य पर्यटन की संभावनाओं को जन्म
दिया है। शायद उसी तरह, जिस तरह पारिवारिक व सामाजिक बिखराव ने वृद्धाश्रम को
जन्मा है।
रविवार, 20 जून 2021
तीन चौथाई: तीन चौथाई स्मृति की रेखाएं
रविवार, 14 जून 2020
‘छिछोरे’ ऐसे तो नहीं होते सुशांत
श्रद्धांजलि |
सूरज की लाली दिखने लगी थी और फिल्म अवसान की ओर बढ़ने लगा था। जब फिल्म खत्म हुई तब मैंने तय किया था कि परीक्षा खत्म होने के बाद अपने बेटे को जरूर दिखाऊंगा। भले ही फिल्म की कई बातें हमारी भारतीय मर्यादा के हिसाब से नहीं थीं, लेकिन इसमें वही सारी चीजें थीं जो आज समाज में होती हैं। इसलिए मेरा मानना था कि जिस किसी का भी बच्चा 12वीं की परीक्षा दे रहा हो या दे चुका हो उसे ‘छिछोरे’ जरूर दिखाना चाहिए।
भाई सुशांत, यूं तो जाने वाले से शिकायत की कोई परंपरा हमारे यहां नहीं, लेकिन तुम्हारी ‘छिछोरे’ ने मुझे यह अधिकार दे दिया है। प्रिय भाई, आज तुमने जो किया उसके बाद तुम क्या बता सकते हो कि मेरे जैसा रूढि़यों से लड़ने वाला पिता भी अपने बेटे का साथ तुम्हारी ‘छिछोरे’ देखना चाहेगा। कई पो चे में तुम्हारी भूमिका इतनी सहज थी, जैसे सारी घटनाएं आंखों के सामने हो रही हों। धौनी को तुमने पर्दे पर हूबहू उतार दिया। इतने लोग तुम्हें चाहते थे। जिस समाज से तुम आते थे उसके लिए तुम बेहद सफल इंसान थे। फिर तुमने ऐसा क्यों किया। बहुत गहरा जख्म दे गए भाई। तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। खैर, मुझे यकीन है कि तुम अपने अभियन से देवलोक को भी जीत लोगे।
- कुणाल देव