शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

दशहरे की छुट्टी-3

जमाना बदल गया
राजू भाई, आप आठ आने में समोसा देते हैं और आपका बगल वाला एक रुपये में चार। ऐसा क्यों? आप हमारे पापा से ज्यादा पैसे लेते हैं।
अरे बाबू, देखा नहीं आपने उसके समोसे का रंग कैसा होता है? उसका समोसा उतना साफ नहीं होता जितना हमारा होता है। इसीलिए ज्यादा पैसे लेता हूं। राजू ने समोसा तलते हुए कहा।
अच्छा। तो आप सिर्फ रंग साफ होने के दूने पैसे लेते हैं। स्वाद तो एक ही रहता है।
नहीं भाई, वह तीसी (अलसी) के तेल में समोसा तलता है। उसका मसाला और आटा भी ठीक नहीं होता। उसे खाने से बीमारी हो सकती है। इसलिए वह सस्ता बेचता है। लीजिए, दीमाग खाना बंद करीए और समोसे खाइए।
बात जैसे-तैसे खत्म करके पीछा छुड़या और राहत की सांस ली। इस बीच पापा आ गए। समोसा-मिठाई खाने के बाद हमने गांव का रुख किया।
शहर क्या कस्बा कह सकते हैं। जैसे ही कस्बा खत्म होता धान से हरे-भरे खेत शुरू हो जाते। गांव को जाने वाला रास्ता कहीं चौड़ा होता तो कहीं पगडंडी के समान। कहीं-कहीं बारिश में कटान के कारण गड्ढे बन गए थे और उनमें नहर का पानी जमा हो गया था। उसमें उतरकर ही गड्ढे को पार करना होता था।
तब हम तीसरी कक्षा कक्षा में पढ़ते थे। छुट्टी में गांव आए थे। विजया दशमी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था। इतना जानते थे कि पिछले नौ दिनों से घर में रामचरित मानस का पाठ हो रहा है। बगल के गांव में ड्रामा हो रहा है और विजयादशमी के दिन कस्बे में मेला लगेगा जहां खिलौने और मिठाइयां मिलेंगीं। दशमी को पाठ खत्म करके पापा के साथ मेला गए और वहीं से तमाम खरीददारी और मिठाई-चाट के मजे लेने के बाद घर लौट रहे थे।
अचानक पूछ बैठे- पापा, ये दशहरा क्यों मनाया जाता है?
पाप बोले- अच्छा तो आप अभी दशहरा के बारे में नहीं जानते हैं? चलिए, बता देते हैं। दरअसल, दशहरा असत्य पर सत्य की जीत का त्योहार है। इसीलिए इसे हम विजय पर्व भी कहते हैं।
लेकिन, किसकी जीत और किसकी हार हुई थी? हमने पूछा।
बेटे, जैसे आप सिनेमा में विलेन और हीरो को देखते हैं न वैसे ही समाज में भी विलेन और हीरो हुआ करते हैं। दशहरा भी हीरो की जीत और विलेन की हार की कहानी है।
त्रेता युग में महर्षि विशेश्रवा नामक एक महर्षि हुआ करते थे। उनके यहां एक पुत्र पैदा हुआ। बचपन से ही वह पढ़ने में कुशाग्र था लेकिन, उसके अंदर आसुरी प्रवृत्ति भी मौजूद थी। महर्षि ने उसकी इसी प्रवृत्ति को देखते हुए उसका नाम रावण रखा। बड़ा होकर वह राक्षसों की साथ हो गया। उसने घोर तपस्या की और दोवताओं से सिद्धियां हासिल कर ली। इसके बाद वह पृथवी लोक पर मनुष्यों तथा ऋषियों को सताने लगा। यहां तक कि उसने विष्णुलोक और ब्रह्मलोक को भी अपने कब्जे में करने की बात ठान ली। उसके नाश के लिए भगवान विष्णु ने राम के रूप में अयोध्या के महाराज दशहरथ के यहां अवतार लिया।
लेकिन पापा, ये आसुरी शक्तियां और रावण का मतलब क्या होता है? हमने बीच में उन्हें टोकते हुए पूछा।
देखो बेटा, हर व्यक्ति के भीतर दोनों प्रकार की शक्तियां होती हैं। एक निर्माण की और दूसरी विनाश की। जो अपनी शक्तियों को निर्माण यानी जनकल्याण के कार्यों में लगाते हैं उन्हें देव और जो विनाश के कार्यों में अपनी शक्तियों को खर्च करते हैं उन्हें राक्षस या असुर कहा जाता है। रावण ने अपनी तपस्या के बल पर अमरत्व और अपराजय होने की शक्ति को प्राप्त कर चुका था। इसलिए वह घमंडी हो गया था। और जानते हो घमंड हमेशा जीव को विनाश की ओर ले जाता है। रावण को भी उसका घमंड उसे विनाश की ओर ले गया।
मतलब? आखिर कैसे? हमने पापा से पूछा।
अपराजय और अमर होने की शक्ति पाने के बाद रावण ने त्रिलोक विजयी होने की ठान ली। इसके बाद वह निरीह लोगों पर चाबुक चलाने लगा। उनका नाश करने लगा। उन्हें मारने लगा और यहां तक कि ऋषियों की तपस्या को भी अपने दूतों से भंग करवाने लगा।
धरती पर त्राहिमाम मच गया। ऋषियों ने देवताओं का आह्वान किया। रावण के विष्णुलोक और ब्रह्मलोक पर कब्जा करने के संकल्प से देवता भी चिंतत थे। ऋषियों की पुकार और आसन्न संकट को देखते हुए देतवाओं ने सभा की। इसमें रावण के खात्मे की जिम्मेदारी भगवान विष्णु को सौंपी गई। तय हुआ कि वही नया अवतार लेगें और रावण से तीनों लोक के लोगों को मुक्ति दिलाएंगे।
फिर क्या हुआ? पापा के रुकने पर हमने पूछा।
अभी इस गड्ढे को पार कर लेते हैं फिर बताते हैं? पानी ज्यादा है। अभी आपको हमारे कंधे पर आना होगा। आइए बैठिए।
क्रमशः जारी

सौदा

पार्टी में खूबसूरत सी
रिसैप्शनिस्ट को देखकर
लोग कहते
कि
उसके मुखड़े पर
गजब की चमक है।
बावजूद इसके कि
उसके चेहरे पर
विषाद की रेखाएं भी
(कवि मन)
मौजूद थीं।
सुबह ही वह
अपने बच्चों की मृत्यु पर
रोयी थी,
और अभी तलक
उसके चेहरे पर
आंसू के दाग
साफ दिख रहे थे।
फिर भी
मुस्कुराहट रही थी
 क्योंकि, 
मालिक ने उससे सिर्फ
मुस्कुराने का
सौदा किया था।