सभी अपनों को नव वर्ष ईसवी सन् 2023 की ढेरों शुभकामनाएं एवं बधाई... महाकाल की कृपा बनी रहे...
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पांच दिसंबर की शाम श्री ओंकारेश्वर से लौटने के बाद हम रामघाट के पास उतर गए। सारथी अभिषेक जी ने बता दिया था कि साढ़े पांच बजे के आसपास आरती शुरू हो जाएगी। हम तय समय से पहले रामघाट पहुंच गए थे। तब वहां मां क्षिप्रा की आरती की तैयारी चल रही थी। पास में तखत रखी हुई थी, जिस पर हम लोग कुछ देर बैठे। इस बीच आरती का माहौल बनने लगा। साजिंदों ने नगाड़ा, डमरू और घंटी के स्वरों को संयोजित करने का प्रयास शुरू कर दिया। करीब 10 मिनट के भीतर नगाड़ा, डमरू, झाल और घंटी की ध्वनियां लोगों के कान में घुलनें लगीं और वे खिंचे हुए घाट की तरफ चले आए।

नगाड़ा एक बच्चा बजा रहा था और घंटी एक वयस्क। जब वादन का पहला दौर खत्म हुआ तो घंटी बजाने वाले ने बच्चे पर रौब जमाने का प्रयास किया और कहा कि तुम सही से नगाड़ा नहीं बजा रहे हो। दोनों में काफी देर तक बहस हुई, लेकिन बच्चा अपनी जिद पर अड़ गया। नतीजतन, घंटी बजाने वाले ने नाराज होकर मैदान छोड़ दिया। घंटी बजाने की जिम्मेदारी किसी और ने संभाली। थोड़ी देर बाद वादन का दूसरा दौर शुरू हुआ और इसी बीच आरती भी शुरू हो गई।
इस बार सभी वाद्य यंत्रों के ताल मेल खा रहे थे और आरती की मंद ध्वनि के साथ उनका तारतम्य पूरी तरह बैठ रहा था। मां क्षिप्रा आरती की एक अच्छी बात यह भी थी कि पुजारी जी ने मौजूद सभी श्रद्धालुओं को इसमें शामिल होने का मौका दिया। यानी, आप नदी तट पर जाकर खुद आरती कर सकते हैं। जब आरती चल रही थी, तब एक नृत्यांगना वहां नृत्य करने लगीं। मुझे लगा कि वह पेशेवर होंगी और इसके बहाने कुछ आर्थिक कमाई कर लेती होंगी। लेकिन, जैसे-जैसे वाद्य यंत्रों की ध्वनियां लय पकड़ने लगीं, वैसे-वैसे नृत्यांगना भी उनके लय में घुलने लगीं। आरती की धुन पर इतना मनहर और शालीन नृत्य हमने पहली बार देखा था।
क्षिप्रा आरती के बाद हम पहुंचे शक्तिपीठों में शुमार मां हरसिद्धि मंदिर। यह मंदिर क्षिप्रा नदी और श्री महाकाल मंदिर के बीच है। वहां मां की आरती चल रही थी। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत दीवारों से घिरा यह मंदिर कई मायनों में विशेष है। यहां मां सती की प्रतिमा नहीं है, बल्कि उनके शरीर का एक अंश (कोहनी) है। मंदिर के बाहर काफी ऊंचे दो दीप स्तंभ बने हुए हैं, जिनपर शाम में जब दीये जलते हैं तो अनूठी छंटा दिखती है। बताते हैं कि इन सैकड़ों दीयों को जलाने में रोजाना 60 लीटर तेल लगता है।
जब हम हरसिद्धि माता के मंदिर में पहुंचे, तो वहां आरती चल रही थी। ढोल नगाड़ों की थाप पर अद्भुत स्वरों में आरती की जा रही थी। पंचम स्वर में होने वाली आरती के बोल प्रचलित ही थे, लेकिन गायन का अंदाज निराला होने के कारण लोग उन्हें सहज पकड़ नहीं पा रहे थे। मंदिर में वालेंटियर की संख्या ठीक-ठाक थी, जो लोगों की दर्शन में मदद कर रहे थे। वहां से दर्शन के बाद हम पैदल ही होटल लौट गए। जल्दी सोने का उपक्रम किया, क्योंकि रात 12 बजे श्री महाकाल की भस्म आरती के लिए लाइन में लगना था। (क्रमशः)
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