तीन चौथाई नई राहें

काम का सही मूल्यांकन भी है जरूरी

-कुणाल देव-

कई बार ऐसा होता है कि आपकी मेहनत व प्रतिभा के अनुरूप आपको सफलता नहीं मिल पाती है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं- पहली, आप सही दिशा में सही प्रयत्न नहीं कर रहे हों और दूसरी, आपके काम का मूल्यांकन ही सही नहीं हो पा रहा हो। दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं होतीं। इन स्थितियों में भले ही आपका वर्तमान बरकरार रह जाए, लेकिन भविष्य कतई फलदायी नहीं हो सकता। कई परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं और कुछ खत्म भी हो चुकी हैं। आगे रोजगार के अवसर आपका इंतजार कर रहे हैं। नौकरी पाना तो कठिन है ही, कहीं ज्यादा कठिन है उसमें बने रहना और खुद को उस काम के उपयुक्त प्रमाणित करना।

जैसी जिसकी समझ, वैसी उसकी परख 
24 फरवरी को दैनिक जागरण में प्रकाशित।


पढ़ाई पूरी होने पर गुरुदीक्षा का समय आया। गुरु ने कहा- किसी की वाजिब कीमत कोई पारखी ही बता सकता है। जैसे, किसी व्यक्ति के गुणों की परख कोई गुणवान ही कर सकता है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप अपने गुणों का बखान उसी व्यक्ति के पास करें, जो उनके महत्व को जानता और समझता हो। शिष्य को यह बात नहीं समझ आई। तब गुरु ने तय किया कि यह बात शिष्य को उदाहरण के साथ समझाई जाए। उन्होंने शिष्य को एक रत्न दिया और अलग-अलग लोगों से उसका मूल्य पता करने को कहा। शिष्य एक सब्जी विक्रेता के पास गया और रत्न की कीमत पूछी। सब्जीवाले ने बताया कि रत्न के बदले उसे 10 किलोग्राम आलू मिल सकता है। शिष्य को संतोष नहीं हुआ। वह हलवाई के पास गया। हलवाई ने कहा कि इसके बदले वह 10 किलोग्राम कोई भी अच्छी मिठाई दे सकता है। शिष्य फिर साहूकार के पास गया। साहूकार ने रत्न की कीमत एक हजार स्वर्ण मुद्राएं बताई। रत्न जब सर्राफ के पास पहुंचा तो उसकी कीमत 10 हजार स्वर्ण मुद्राएं हो गई। अब शिष्य की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। अंत में वह रत्नों के बड़े और प्रसिद्ध कारोबारी के पास पहुंच गया। कारोबारी ने रत्न को काफी बारीकी से देखा-परखा और सोने की थाली में रखते हुए उसकी पूजा करने लगा। कारोबारी ने रत्न की परिक्रमा की और शिष्य से बोला- मेरी तो क्या, किसी बड़े राजवाड़े की पूरी संपत्ति भी इसकी वाजिब कीमत नहीं होगी। यह रूबी है।

कौशल ही बढ़ाएगा आपको आगे

उम्र और समय के अनुसार व्यक्ति की दिलचस्पी भी बदलती रहती है। इन बदलाव के बीच कई बार युवा अपने करियर के बारे में उचित निर्णय नहीं ले पाते। इंजीनियरिंग और मेडिकल से प्रभावित होकर कई बार युवा बिना दिलचस्पी उस दौड़ में शामिल हो जाते हैं। कई बार पढ़ाई के बीच में और कई बार नौकरी करते हुए उन्हें महसूस होने लगता है कि यह काम उनके लिए नहीं बना है। वह अच्छा साहित्यकार बन सकते थे... अच्छा कलाकार हो सकते थे। लेकिन, जब यह बात समझ में आती है तब तक समय आगे बढ़ चुका होता है। वे करियर की दिशा में कुछ आगे बढ़ चुके होते हैं और एक बार फिर नए सिरे से शुरुआत से डरने लगते हैं। इस मोड़ पर नए करियर की शुरुआत निश्चित तौर पर जोखिमभरा फैसला होगा, लेकिन इससे भी ज्यादा जोखिम होगा अनिच्छा के साथ खुद को किसी पेशे के लिए उपयुक्त साबित करना। इसलिए, जरूरी है कि अपने कौशल को पहचानें और जब भी उसकी सही परख हो जाए साहसिक फैसले से कतई न डरें।

बात रखने का सलीका बेहद महत्वपूर्ण

आप अपनी पढ़ाई या काम से प्यार करते हों, उसकी जानकारी भी रखते हों... लेकिन, कामयाबी तब भी दूर है तो निश्चित तौर पर आपको खुद के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। यह सोचने की जरूरत है कि जिसे आप प्यार करते हैं, जिसके बारे में जानते हैं, क्या समयानुकूल उसकी सटीक व्याख्या कर पाते हैं? यानी, परीक्षा या पेशे में क्या अपने अनुभव को सही से रख पाते हैं? ज्यादातर लोग इसी मोर्चे पर मार खा जाते हैं। अब जरा सोचिए, अगर आप अपनी बात उस व्यक्ति तक सही से नहीं पहुंचा सकते जिसके पास आपके मूल्यांकन की जिम्मेदारी हो तो वह व्यक्ति आपका या आपके काम का सटीक मूल्यांकन कैसे कर सकता है? इसिलए, जब भी मूल्यांकन की स्थित आती है तो अपनी बात सलीके के साथ पूरी मजबूती से रखनी चाहिए। ध्यान रहे कि अपनी बात रखने से पहले खुद के बारे में आपके दिमाग में न तो कोई भ्रम रहे, न ही कोई डर।

(24 फरवरी को दैनिक जागरण में प्रकाशित। Facebookपर भी उपलब्ध)
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नजरिये में छिपा है सफलता का फलसफा


-कुणाल देव-

परीक्षाओं का दौर शुरू होने वाला है। हाई स्कूल से लेकर आइआइटी और यूपीएससी की तैयारी करने वाले किशोर और युवाओं के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। वे तनाव में भी आ जाते हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या कोई भी परीक्षा जीवन की आखिरी परीक्षा हो सकती है? नहीं, बिल्कुलक नहीं। वास्तव में एेसी परीक्षाएं तो पूरी जिंदगी चलती रहती हैं। सुबह उठने से लेकर सोने तक हम सभी को न जानें कितनी परीक्षाओं से सभी को गुजरना पड़ता है। कुछ में सफलता मिल पाती है और कुछ में नहीं, लेकिन क्या हम प्रयास करना छोड़ देते हैं या हमें छोड़ देना चाहिए? जहां तक सफलताओं का सवाल है तो वह पूरी तरह आपके नजरिये और प्रयास पर निर्भर करता है। आपका नजरिया जितना व्यापक होगा, आप उतनी ही गहराई के साथ चीजों को भांप और समझ पाएंगे। निश्चित तौर आप उतने ही सफल भी हो पाएंगे।
16 दिसंबर 2019 को दैनिक जागरण में प्रकाशित 

मंजिल तय करने से पहले खुद को आंकिएः

अक्सर लोग अपनी जिंदगी में बड़ी-बड़ी ख्वाहिशें पाल लेते हैं। बड़ी मंजिल तय कर लेते हैं, लेकिन अपनी क्षमता का न तो आंकन करते हैं और न ही ख्वाहिश व मंजिल के अनुरूप उसमें विकास कर पाते हैं। ऐसे में अपेक्षा के अनुरूप उन्हें सफलता नहीं मिल पाती और वह निराशा के भंवर में फंसते चले जाते हैं। उदाहरण के तौर पर एक कहानी सुनिए- एक बार बादशाह अकबर की बेगम रूठ गईं। अकबर ने कारण पूछा तो बेगम ने कहा- मेरा भाई सेना में मिहनत और जोखिम का काम कर रहा है और आप बीरबल को मंत्री बनाए बैठे हैं। आप मेरे भाई को मंत्री बनाइए। अकबर ने समझदारी से काम लिया। सीधा जवाब देने की बजाय उन्होंने अगले दिन बेगम के सामने ही अपने साले को बुलाया और कहा कि फलां बंदरगाह पर एक जहाज आया है। तुम जाकर पता लगाओ कि वह जहाज कहां से आया है और किसका है? इसके बाद अकबर ने यही टास्क बीरबल को भी दिया। कुछ दिनों बाद दोनों के काम से लौट आने की सूचना मिली। अकबर ने बेगम के सामने ही दोनों को अपने पास बुलवाया। सबसे पहले उसने अपने साले से जहाज के बारे में जानकारी देने को कहा। साले ने बताया कि जहाज श्रीलंका से आया है और बैजू सेठ का है। अकबर ने आगे पूछा- जा कहां रहा है? इस पर साले ने कहा कि आपने जो जानकारियां मांगी थीं, मैं केवल उन्हीं के बारे में पता लगाकर आया हूं। अब अकबर ने बीरबल से जानकारी देने को कहा। बीरबल ने कहा- जहाज श्रीलंका से आ रहा है। बैजू सेठ का है। उसमें कीमती रत्न व आभूषण लदे हैं। जहाज मायानगरी जाएगा। सेठ 1000 स्वर्ण मुद्राओं का राजस्व अदा कर चुका है। जहाज की सुरक्षा में दो दर्जन सैनिक लगा दिए गए हैं। बीरबल का जवाब खत्म होने पर अकबर ने अपनी बेगम की ओर देखा। उनकी नजरें झुकी हुई थीं।

चीजों को पाने के लिए योग्य बनिएः

मन बहुत चंचल होता है। इसकी गति की कोई सीमा नहीं होती। तुरंत-फुरंत में यह असंख्य कल्पनाएं पैदा कर बैठता है। लाखों लक्ष्य तय कर लेता है। लेकिन, हकीकत इससे बहुत अलग होता है। कोई भी व्यक्ति वही पाता है, जिसका वह योग्य होता है। प्रबल किस्मत से अगर कभी योग्यता से ज्यादा पा भी लेता है तो बहुत दिनों तक टिका के नहीं रख पाता। अंग्रेजी में एक कहावत है-फर्स्ट डिजर्व एंड लास्ट डिजायर। यानी, पहले योग्य बनिए, फिर इच्छा कीजिए। जरा सोचिए, बेगम के कहने पर अगर अकबर अपने साले को मंत्री बना देता तो उसके राजपाठ का क्या होता। साले का भी क्या होता। कितने दिनों तक मंत्री पद पर बना रह पाता। मंत्री के रूप में उसकी असफलता की कहानियां, सैनिक के तौर पर हासिल उपलब्धियों को ढंक लेतीं।

समस्याओं में ही छिपा होता है समधान का तरीकाः

परीक्षा के सवाल या जीवन की समस्याएं वास्तव में मकड़े की जाल या उलझे हुए धागे की तरह होते हैं। वास्तव में वे उतने जटिल नहीं होते, जितना हम अनुभवहीनता में उन्हें मान बैठते हैं। अक्सर आपने महसूस भी किया होगा कि कोई अनसुलझा सवाल या समस्या, बहुत देर तक टिक नहीं पाता अगर आप हिम्मत के साथ उससे भिड़ जाते हैं। हां, भिड़ने से पहले उनकी उलझन को समझना और सिरे को तलाश करना बहुत जरूरी है। बेगम की नाराजगी अकबर के लिए भी जटिल समस्या और बड़ी उलझन थी। लेकिन, उसने अपने अनुभव व धीरज के साथ काम लेते हुए सिरों को सुलझाया और ऐसा हल निकाला कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। यानी, मंत्री पद योग्य के हाथों में रह गया और साले की मौजूदगी में उसकी सेना भी सशक्त रही।

(16 दिसंबर को दैनिक जागरण में प्रकाशित। फेसबुक पर भी उपलब्ध)

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