तीन चौथाई व्यंग्य

मुबारक हों ‘अच्छे दिन’ की सौगातें

अखबार हाथ में आते ही सवेरे-सवेरे बेबाक सिंह का मूड खराब हो गया. ऊपर से पत्नी ने हाथ में झोला थमाते हुए राशन लाने का फरमान जारी कर दिया. किचकिच तो तभी शुरू हो जाती, लेकिन दिन अभी बाकी था और बेबाक सिंह उसे खराब नहीं करना चाहते थे. अखबार मेज पर रखते हुए झोला उठाकर पैदल ही जाने लगे. पत्नी ने तुरंत टोका, ‘‘सामान क्या सर पर लायेंगे?’’ ‘‘नहीं, ट्रक पर लायेंगे’’, बेबाक सिंह ने झुंझलाते हुए कहा और बुलेट ट्रेन की तरह सरपट निकल पड़े. दुकान पर ‘अच्छे दिन’ के पोस्टर लगे हुए थे. भीड़ अच्छी-खासी थी, लेकिन मुस्कान सिर्फ दो ही जगह दिखायी दे रही थी- या तो पोस्टर में या फिर दुकानदार के चेहरे पर. सरसों
व्यंग्यः कुणाल देव 
तेल की कीमत में 9 रूYपये का इजाफा हो गया था. रिफाइंड भी चार रूYपये चढ़ गया था. दुकानदार बार-बार ग्राहकों को कह रहा था, यही मौका है ले लीजिए वरना कीमतें और बढ़ने वाली हैं. मेरे पास स्टॉक है, इसलिए पुराने ग्राहकों को पुराने रेट पर दे रहा हूं, नहीं तो बाजार में पता कर लीजिए कि चीजों के दाम कैसे आसमान पर हैं. बेबाक सिंह असमंजस में. पैसे तो पहले जितने ही लाये थे, पर कीमतें बढ़ गयी थीं. अब एक ही उपाय था कि सामान कम किया जाये, सो वह समझ-समझ कर दुकानदार को सामान की मात्रा लिखवा रहे थे. दुकानदार तो कुछ बोल नहीं पाया, लेकिन पीछे वाले सज्जन चुप नहीं रह पाये, कहा-‘‘सिंह साहेब, घर से ही लिस्ट तैयार करके लाते. दूसरों का नंबर तो आने दीजिए.’’ बेबाक सिंह का धैर्य जवाब दे गया, ‘‘लिस्ट तो घर से तैयार करके ही लाया था, लेकिन दाम बढ़ने का पता तो दुकान में आकर चला न! जिस रफ्तार से चीजों की कीमतें बढ़ रही हैं, उससे तो लगता है कि ‘अच्छे दिन’ सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही आये हैं.’’ दुकान में जब किसी ने जवाब नहीं दिया तो बात खत्म हो गयी और झोला कंधे पर रखे बेबाक सिंह घर पहुंचे. पहुंचते ही पत्नी ने पूछ लिया-‘‘बाइक क्यों नहीं ले गये थे? झोला कंधे पर टांगे आ रहे हैं. इज्जत-विज्जत का ख्याल है कि नहीं?’’ अब  बेबाक सिंह से नहीं रहा गया. पत्नी पर ऐसे फट पड़े, जैसे मनाव बम बन गये हों-‘‘अपनी इज्जत का ख्याल करूंगा तो सबको भूखे ही रहना पड़ेगा. केंद्र ने पेट्रोल की कीमत कम की, तो झारखंड सरकार ने बढ़ा दी. अनाज खेत में है तो मिट्टी और दुकान में पहुंचा तो सोना. तीन साल पहले खेत सरकार ने ले लिया था, अब तक मुआवजा नहीं मिला. रोजाना नीतियां बदल रही हैं. नहीं बदल रही है तो किसान की किस्मत. खेत देकर किसान मजदूर बन गया और साहूकारों की चांदी हो गयी. जनता की आमदनी तो लूपलाइन में खड़ी ट्रेन जैसी है, लेकिन साहूकारों का ब्याज बुलेट ट्रेन से भी तेज है. अब इस हिसाब से देखो तो अच्छे दिन आये हैं, लेकिन सेठ, साहूकार और पूंजिपतियों के. जनता तो तब भी वेंटीलेटर पर थी और अब भी है.’’
प्रभात खबर में प्रकाशित 27 फरवरी 2015 को प्रकाशित
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रजी! ‘कुर्सियापा’ हो गया है आपको 

‘बेबाक सिंह’ इन दिनों बीमार चल रहे हैं. तनाव थोड़ा ज्यादा हो गया है. इसका प्रत्यक्ष कारण न तो मुझे पता चल पा रहा है, न ही वह बता रहे हैं. आखिर, एक दिन मैं ‘बेबाक सिंह’ को लेकर डॉक्टर के पास गया. डॉक्टर परिचित थे और मजाकिया अंदाज वाले भी. सो, ‘बेबाक सिंह’ को देखते ही कुछ इस अंदाज में पूछ बैठे-‘‘अरे भाई, लोगों को बीमार करने वाले, खुद ही बीमार से क्यों दिख रहे हैं?’’ ‘बेबाक सिंह’ भी कहां चुप रहने वाले थे, तुरंत पलटवार किया-‘‘क्या करें, दूसरों की रोजी-रोटी का भी तो ख्याल रखना पड़ता है.’’ इसके साथ ही सब हंस पड़े और ‘बेबाक सिंह’ के चेहरे पर रौनक लौटती दिखायी दी. डॉक्टर साहेब ने मुझे इशारा करते हुए
व्यंग्यः कुणाल देव 
कहा-‘‘महापुरूष बीमार नहीं हैं. लगता है गलचौरी के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं. कुछ वक्त इन्हें भी दे दिया करिये. बिल्कुल ठीक हो जाएंगे.’’ इतने में सफेद-कुर्ता पायजामा में भारी-भरकम शरीर के स्वामी नेताजी का भी वहां पदार्पण हो गया. जोर से हांफते हुए उन्होंने कहा-‘‘डॉक्टर साहेब! जल्दी कुछ करिये, वर्ना मर जाएंगे. कितनी भी कोशिश कर रहे हैं, नींद नहीं आ रही. अजीब सी बेचैनी छायी रहती है. मन करता है पूरी दुनिया को आग लगा दें. तमाम डॉक्टरों को दिखा लिये, कुछ नहीं हुआ. पैसा पानी की तरह बहा, सो अलग.’’ डॉक्टर ने नेताजी को आला लगाकर चेक किया और कहा-‘‘सरजी! कोई बड़ा रोग नहीं है, लेकिन जल्दी ठीक भी नहीं होगा.’’ ‘‘यह कैसा रोग है डॉक्टर साहेब, जो बड़ा भी नहीं है और जल्दी ठीक भी नहीं होगा?’’ नेताजी ने बहुत ही चिंता के साथ पूछा. ‘‘अरे, डरिये मत भाई. इसका नाम है-कुर्सियापा.’’ डॉक्टर ने हंसते हुए कहा. ‘बेबाक सिंह’ आदतन बीच में टपक पड़े-‘‘यह क्या नया रोग है?’’ ‘‘अरे नहीं भाई, रोग तो पुराना ही है, लेकिन नाम नया पड़ा है. यह रोग उन नेताओं को होता है, जो या तो चुनाव हार गये हों या फिर कुर्सी गंवा बैठे हों. इसके बाद जो बेचैनी, अनिंद्रा और चिड़चिड़ापन शुरू होता है, वह अगली जीत या कुर्सी पाने तक जारी रहता है.’’ डॉक्टर ने कहा. ‘‘अच्छा वही वाला न, जिससे सुशासन बाबू परेशान चल रहे हैं. जिसके चक्कर में मांझी ने खुद ही पार्टी की नाव डूबो दी. बाघ-बकरी एक ही घाट पर पानी पीने के लिए तैयार हैं. जिससे मफलर मैन भी नहीं बच पाये थे. इसी रोग के कारण महान संन्यासी और चिंतक गोविंदाचार्य बीच-बीच में मीडिया फ्रेंडली और सोशल हो जाते हैं.’’ ‘बेबाक सिंह’ क्रिकेटर युवराज सिंह की तरह फॉर्म में लौट आये और बातों की धुआंधार बैटिंग शुरू कर दी. ‘‘डॉक्टर साहेब, एक सलाह आपके लिए भी है. अच्छी कमाई चाहते हैं तो दिल्ली का रूYख कर लीजिये. सुना है, एक राजनीतिक सुनामी ने वहां के बड़े-बड़े धुरंधरों को बेरोजगार कर दिया है. कुछ में तो परिणाम से पहले ही ‘कुर्सियापा’ के लक्षण दिखायी देने लगे थे.’’
प्रभात खबर में प्रकाशित 17 फरवरी 2015 को प्रकाशित
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17 वर्षों की बेमेल शादी फलसफा धमाकेदार तलाक

आड़े-तिरछे
गुड़िया को दूल्हा तो पहले दिन से ही पसंद नहीं था, लेकिन उसकी ताकत को वह नजरअंदाज नहीं कर पाई। ऐसा नहीं था कि दूल्हा गुड़िया के स्वभाव और जरूरत को नहीं समझता था, लेकिन अपना हित साधते हुए वह भी चुप रहा। जिस समाज ने दोनों की शादी कराई थी, उसे यह गुमान भी न था कि दुल्हन एक दिन भड़क जाएगी। वह भी दो-दो बार सरकार जनने के बाद।   
       अचानक एक दिन गुड़िया को याद आया कि अब डर कैसा? माना कि दूल्हे की पूरी रकम यानी ताज-ए-हिन्दुस्तान नहीं मिल पाएगी, लेकिन मेहर (राज्य की सत्ता) रोकने का दम किसी में अब नहीं रहा। फिर क्या था, गुड़िया को दूल्हे में रोजाना नई-नई बुराइयां दिखने लगीं। वह कहती तो कुछ भी नहीं थी, लेकिन अपनी नापसंदगी जताने से बाज भी नहीं आती। खैर, जैसे-तैसे संबंध चलता रहा। उधर, कमजोर दूल्हा अपनी कमी ढूंढ़ कर इलाज करवाने लगा। डॉक्टरों की टीम ने जो दवा दी, उससे दूल्हे के शारीरिक सौष्ठव और रंग में निखार आने लगा। जैसे-जैसे दूल्हे की कमजोरी जाती रही, वैसे-वैसे गुड़िया की मुस्कान कुटिल होती गई।  

       एक दिन जब दूल्हा समाज के सामने खुलकर सामने आया तो गुड़िया को बहाना मिल गया। 
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी। कहने लगी, देखो-देखो दूल्हा बेवफा है, मतलबी है, हमारे बारे में तो सोचता ही नहीं। 17 वर्षों से मैं चुप रही कि समाज की मान और विश्वास कायम रहे। लेकिन, अब नहीं रहा जाता। अगर, दूल्हा मतलबी नहीं होता तो इसके चेहरे पर निखार कैसे आता। अब मुझे इसके साथ नहीं रहना। 
     गुड़िया की बात सुनकर पंचायत हुई। वैसी पंचायत, जिसमें सिर्फ गुड़िया के पक्ष के लोग थे। वह गुड़िया को जानते थे। उसकी जिद को जानते थे। वह जानते थे कि अभी तो शादी टूट रही है, अगर गुड़िया की बात नहीं मानी गई तो परिवार टूट जाएगा। पूरी पंचायत दादाजी चुप रहे। वह गुड़िया को सबसे बेहतर जानते थे। वह जानते थे कि मैं अगर विरोध करूंगा तो मेरा चचेरा भाई गुड़िया के समर्थन में आ जाएगा और गुड़िया हाथ से निकल जाएगी। परिवार टूट जाएगा और बुढ़ापे में मेरी पूछ समाज में कुत्ते जैसी भी नहीं रह जाएगी। इसलिए पूरे वक्त तक चुप रहे। कुछ नहीं बोले। अंत में गुड़िया के फैसले को उन्होंने जनता के सामने रख दिया। शादी टूट गई। दूल्हा ठगा सा महसूस करने लगा। अपनी झुंझ मिटाने के लिए समाज के सामने दुहाई देता रहा।
      इस बीच समाज के लोगों ने गुड़िया के दादाजी से सवाल किया कि 17 साल बाद तलाक क्यों? गुड़िया के दादाजी सधे हुए थे। काफी अनुभव था उनका जोड़तोड़ के मामले में। उन्होंने औरंगजेब की कहनी पढ़ी थी, कैसे उसने अपने 100 भाइयों को मरवाकर शाहजहां को कैद किया और सत्ता पाई डरते थे कि कहीं उन्हें भी कैद न झेलनी पड़े। समाज के सीधे सवाल का सीधा जवाब। कहा, समाज ने शादी करवाई थी तब वह उनकी जिम्मेदारी थी। अब उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई है। इसलिए ज्यादा हाय-तौबा न मचाएं। अब, यह गुड़िया और उसके दूल्हे के बीच का निजी मामला हो गया है। इसलिए किसी को दखल देने की जरूरत ही नहीं है। 

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दोस्तों का वर्ग विभाजन

दोस्ती के रिश्ता बड़ा अनोखा होता है. कोई शर्त नहींकोई पाबंदी नहीं. न माफी की मांगन धन्यवाद ज्ञापनबस खांटी दिल का रिश्ता. दोस्ती को किसी दायरे में नहीं समेटा जा सकता और न ही खेमों में बांटा जा सकता है. पर आज हम लोग दोस्तों को अलग-अलग कैटेगरीज में बांटने की कोशिश करेंगे कि दोस्त आखिर कितने प्रकार के होते हैं.
पहला प्रकार - मतलबी दोस्त. ये दोस्त तब तक आपसे दोस्ती रखेंगे, जब तक आप इनके काम आयेंगेतब तक ये आपसे बड.ी मीठी-मीठी बातें करेंगेआपकी खैर-खबर लेंगेपर जैसे ही आप इनके काम आना बंद हो गयेइनके दिल के दरवाजे आपके लिए बंद हो जायेंगे. ये आपकी परछाईं से भी दूर भागेंगे और आपको देख कर ऐसा बरताव करेंगे जैसे आपके साथ बात करते हुए अगर उन्हें किसी ने देख लिया तो इन्हें आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया जायेगा.

दूसरा प्रकार - चापलूस दोस्त. ये दोस्त आपकी खूब तारीफ करेंगे, आपकी शान में कसीदे पढे.ंगे. अगर इनका बस चले तो ये आप पर मित्र चालीसा की रचना कर डालें. अपनी इतनी तारीफ सुन कर आप भी फूल कर कुप्पा हो जायेंगे. पर ये तारीफें यूं ही बेसबब नहीं गालिब’. ये सब इसलिए क्योंकि आप इन पर खर्चा करते हैं, इनके खाने-पीने का ध्यान रखते हैं. एक दिन ाप इनसे कह कर देखिये कि आज से आप उनका कोई भी खर्च नहीं उठायेंगे, फिर देखिये कमाल! मित्र महोदय ने आज तक जितनी तारीफें की थीं, उनसे दोगुनी गालियां देंगे, और ऐसी-ऐसी गालियां देंगे कि अगर आप गालियों की डिक्शनरी खोल कर बैठ जायें, तो भी आप उनका अर्थ नहीं ढूंढ. पायें.

तीसरा प्रकार - दोमुंहे दोस्त, नहीं, नहीं, मैं सांप के नहीं, दोस्त की ही बात कर रहा हूं. हालांकि आपको उनका एक ही मुंह दिखाई देता है, पता नहीं दूसरा मुंब कहां छुपा के रखते हैं. ये दोस्त आपके सामने आपकी बड.ी तारीफ करेंगे. हमेशा अच्छी-अच्छी बातें करेंगे, आपका दिल बिलकुल गार्डन-गार्डन हो जायेगा. मगर आपकी पीठ के पीछे ये ही दोस्त आपकी इतनी बुराई करेंगे कि आप खुद को ही शक की निगाहों से देखने लगेंगे कि ‘‘यार, मैं इतना बुरा हूं! इसने जिन घटिया करतूतों का जिक्र किया, वो सब मैं कर चुका हूं! मुझे तो पता ही नहीं था.’’ और अगर आप ज्यादा भावुक हुए तो ढक्कन भर पानी में डूब मरेंगे. (चुल्लू भर पानी मिलता कहां है आजकल?)

चौथा प्रकार - जलने वाले दोस्त. ऐसे दोस्त तब तक आपके सो दोस्त हैं, जब तक आप कुछ बड.ा काम नहीं कर लेते. जैसे ही आपने कोई कारनामा कर मारा, लोग आपकी तारीफकरने लगे, आपको जानने-पहचानने लगे, बस, बदल गया इनका रंग-ढंग. ये स्वीकार ही नहीं करेंगे कि आपने अपने बूते पर कुछ बड.ा काम किया है. लोगों से आपकी बुराई करते फिरेंगे, ‘‘अरे साहब! तुक्का लग गया और लोगों ने सर चढ.ा लिया, वरना इससे बडे.-बडे. कारनामे तो मैंने किये हैं.’’ ‘‘अरे जनाब, मैंने तो सुना है पैसे खिलाये हैं ऊपर तक’’ वगैरा-वगैरा. एक झटके में ये आपको खास से चरित्रहीन की श्रेणी पर लाकर पटकेंगे और इसी बात की दुहाई देकर आपसे दोस्ती तोड. लेंगे.

पांचवां प्रकार - ईगो वाले दोस्त. ये वो दोस्त हैं जो पूरी शिद्दत से आपसे दोस्ती निभायेंगे, आपकी हर मुमकिन सहायता करेंगे. आपको लगेगा कि कितने जन्मों के पुण्यकाल स्वरूप आपको ऐसा दोस्त मिला है. रक ये सब सिर्फ तब तक चलेगा, जब तक आप इनकी हां में हां मिला रहे हैं. जिस दिन उनके दिन को रात कहने पर आपने कहा कि ‘‘ओये नहीं यार! सूरज चमक रहा है, यह तो दिन है.’’ बस! सत्यानाश! माबदौलत भड.क जायेंगे. आपका वही जांनिसार दोस्त आपको इतना भला-बुरा सुनायेगा कि आप अपने अब्बू का नाम भूल जायेंगे. बस एक ही चीज आपको याद रहेगी कि अभी रात है. 
छठा प्रकार - मदद करने वाले दोस्त. ये वो दोस्त हैं जो आपकी मदद करते हैं, हमेशा मदद करते हैं, बात-बात पर मदद करते हैं और बिना बात के भी मदद करते हैं. अगर आपको मदद की जरूरत न भी हो, तो भी ये जबरदस्ती आपकी मदद करेंगे. दरअसल ये चाहते ही यह हैं कि आप इनकी मदद के मोहताज रहें. कदम-कदम पर इनसे मदद की भीख मांगे. अगर इनका बस चले तो ये पहले आपको धक्का मार कर गड्ढे में गिरा दें, फिर हाथपकड. कर आपको बाहर निकालें. आपकी मदद करके इन्हें महानता का अनुभव होता है. जिस दिन आप स्वावलंबी हो गये और इनसे मदद लेनी बंद कर दी. उस दिन हो गया शटर डाउन. इनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचेगी और ये आपसे दोस्ती तोड. लेंगे.
सातवां प्रकार - हाइटेक दोस्त. ये दोस्तों की लेटेस्ट किस्म है. ये दोस्त आपसे सिर्फ सोशल नेटवर्किंग साइ्ट्स पर बातें करेंगे, गले पड.-पड.के बातें करेंगे. आपको लगेगा कि ये आपके सो हितैषी हैं, पर जब आप इनके सामने आयेंगे तो ये ही दोस्त ऐसे मुंह घुमाकर चल देंगे जैसे आपसे आमने-सामने बात करने पर इन्हें सरकार को टैक्स पे करना होगा.
अंतिम प्रकार - सो दोस्त. ऐसे दोस्त जो बिना किसी टर्म एंड कंडीशन के आपसे दोस्ती निप्रभाते हैं. हर सुख-दुख में आपका साथ देते हैं. आपकी तरक्की देख कर दिल से खुश होते हैं. कृष्ण और सुदामा जैसे दोस्त, कर्ण और दुर्योधन जैसे दोस्त. पर पता नहीं क्यों आज ऐसे दोस्तों की तादाद कम होती जा रही है. तभी तो दोस्ती के पवित्र रिश्ते की खिल्ली उड.ाता हुआ ऐसा फिल्मी गाना भी सुनने को मिल रहा है कि हर एक फ्रेंड कमीना होता है.
(संपर्क : 7209601304)

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वित्तमंत्री के नाम ‘थाली’ का धन्यवाद पत्र

आड़े-तिरछे
आदरणीय वित्तमंत्री महोदय,
आपकी नीतियों ने वैसे तो पूरे देश पर उपकार किया है, लेकिन हम ‘थाली’ विरादरी के लोग सबसे ज्यादा उपकृत हैं। तुच्छ मानव जाति के लोग आपकी नीतियों की खिलाफत कर रहे हैं। सड़कों तक पर उतर जा रहे हैं। किंतु, हमारी प्रार्थना है कि इन अज्ञानी और नश्वर लोगों को अज्ञानी मानते हुए माफ कर दीजियेगा।
श्रीमान, आप और आपकी सरकार पर महंगाई बढ़ाने का आरोप लगता है। हो सकता है इसमें सच्चाई भी हो। आप भरोसा रखिये, हमारा समुदाय इससे सहमत नहीं है। मानव जाति भले ही आपके दूरदर्शी कदमों को नहीं समझ सके लेकिन, हम समझते हैं। चलिये, एक बार मान भी लेते हैं कि आपके दूरदर्शी निर्णयों से महंगाई बढ़ी। लेकिन, इसका फायदा आने वाले दिनों में आम लोगों को मिलेगा। हमें तो अभी से मिलना शुरू हो गया है।
पहले, हमारे समाज को यह महसूस ही नहीं होता था कि नाश्ते और खाने में मनुष्य लोग कुछ अंतर मानते भी हैं कि नहीं। 56 प्रकार के व्यंजनों से हमारा कोना-कोना भर जाता था। दम घुटने लगता था। पूरी और तैलीय सब्जियों से तो रुह तक कांप जाता था। सबसे ज्यादा कष्ट उस समय होता था जब धुलाई होती थी। घिस-घिस कर हमारी चमक खत्म कर दी जाती थी। मनुष्यों की जिह्वा को तृप्त करने के चक्कर में हमारी उम्र कम होती जाती थी। लेकिन, आपके कल्याणकारी निर्णयों ने हमें काफी स्पेस (जगह) मुहैया करवाया। गिने-चुने व्यंजनों का परोसा जाना हमें काफी सुकून महसूस करवाता है। खाने से तैलीय पदार्थों के गायब होने से चमक खत्म होने का खतरा भी कम हो गया है।
हम ‘थाली’ लोग प्रकृति से पैदा होकर कृत्रिम रूप में आपके सामने होते हैं। इस प्रक्रिया में होने वाले दर्द को जानते हैं। इसलिए अहिंसा और शाकाहार में विश्वास करते हैं। जब भी हमारे ऊपर मांसाहार परोसा जाता है, उबकाई आने लगती है। लेकिन, आपकी कृपा से अब हमारी यह पीड़ा भी थोड़ी कम हुई है। डीजल की बढ़ रही कीमतों ने परिवहन शुल्क इतना बढ़ा दिया कि नासिक से प्याज आ भी जाता है तो उसकी कीमत सुनकर आम आदमी के आंखों से आंसू ही नहीं आता बल्कि, दिल की धड़कनें भी तेज हो जाती हैं। हम अपनी विरादरी के साथ-साथ मुर्गा, बकरा, तीतर, बटेर, बतख और मछली आदि जीवों की तरफ से भी आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करते हैं।
आपकी काबिल-ए-तारीफ कोशिशों में मुआ रिजर्व बैंक अड़ंगा लगा रहा है। बताइए, सबकुछ ठीक चल रहा था। आम आदमी अपने जीने का ढर्रा बदल रहा था। फिर से जीवन शैली में प्रकृति का समावेश होने लगा था। लेकिन, इस बीच रिजर्व बैंक ने रेपो दर घटाकर ब्याज दर घटा दिया। इएमआइ कम हो गई और फिर से हमारे ऊपर समृद्धि का मार पड़ने लगा। इएमआइ की बचत से पार्टियां होने लगीं और मांसाहारी खाने से निकलने वाले तेल हमारे चेहरे पर कोलतार के समान चिपकने लगे। जी में तो आता है कि रिजर्व बैंक को श्राप दे दूं कि जा तुम्हारा भी हश्र जिम्बांब्वे सरकार (अभी हाल में ही एक खबर आई थी कि जिम्बांब्वे सरकार के खाते में मात्र 11 हजार शेष रह गये हैं) की तरह हो जाए। तुम्हारे बैंक के खाते रुपये देखने को तरसें। 
श्रद्धेय, आप कहीं यह मत सोचने लगियेगा कि रिजर्व बैंक की हरकत से आपके प्रति हमारी आस्था में कोई कमी आई है। नहीं, बिलकुल नहीं। हम जानते हैं कि आप अलौकिक प्रतिभा के धनी हैं। कहीं न कहीं से कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे और हम ‘थाली’ जाति के आसन्न संकट से जरूर ऊबारेंगे।
मानव जाति के लोग गर्व करते हैं कि उनमें सबसे ज्यादा बुद्धि होती है। लेकिन, हम ‘थाली’ जाति के लोग इससे सहमत नहीं हैं (महामना वित्तमंत्री महोदय, क्षमा चाहूंगा। आप और आपकी टीम के इतर लोगों के लिए यह भावना अभिवक्त है। आप तो मानव नहीं, बल्कि महामानव हैं।)। इस जाति के पास जरा भी बुद्धि होती तो आपके निर्णयों का जरा सा भी विरोध नहीं करते।
बताइए, महंगाई बढ़ रही है तो इससे आम आदमी का बुरा कैसे होगा? पतले-दुबले शरीर में दो-दो मन का पेट लिये लोग घूमते हैं तो किस वजह से? पहले जब महंगाई नहीं थी तो लोग ठूंस-ठूंसकर खाते। मोटापे के कारण धरती तो कांपते ही रहती, उस आदमी के भीतर की धमनियां भी दब जातीं। कभी लकवा तो कभी हार्ट अटैक का लोग शिकार होने लगे। महंगाई बढ़ी तो मजबूर होकर लोगों ने खाना कम करना पड़ेगा। कारण है कि मनुष्य ने अपनी सुविधाओं का इतना विस्तार कर लिया है कि उनमें कटौती उसके लिए संभव नहीं। ले-देकर भोजन की एक ऐसा पहलू है जिसमें कटौती दूसरे लोगों को नहीं दिखती। इसलिए आदमी सबसे पहले उसमें कटौती करता है। अब आदमी जब कम खाएगा तो काया तंदरुस्त रहेगी और काया तंदरुस्त रहेगी तो सौंदर्य प्रतियोगिताओं का ताज भला हमसे कौन छीन पाएगा। ‘थाली’ जाति के लोग तो कहते हैं प्रभु कि अगर महंगाई पहले बढ़ गई होती तो एक छोटे से ‘मिस वल्र्ड’ के ताज के लिए 18 वर्षों से इंतजार नहीं करना होता।
हे मानवजाति के उद्धारक वित्तमंत्री महोदय, आपकी महिमा तो अपरंपार है, लेकिन ईश्वर ने इसे समझने की शक्ति ही आम आदमी को नहीं दी। आप, आपकी टीम और आपकी सोच को हम ‘थाली’ जाति के लोग शत-शत नमन करते हैं।   

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