शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

तीन चौथाई: तीन चौथाई व्यंग्य

तीन चौथाई: तीन चौथाई व्यंग्य: मुबारक हों ‘अच्छे दिन’ की सौगातें अखबार हाथ में आते ही सवेरे-सवेरे बेबाक सिंह का मूड खराब हो गया. ऊपर से पत्नी ने हाथ में झोला थमाते हुए राशन लाने का फरमान जारी कर दिया. किचकिच तो तभी शुरू हो जाती, लेकिन दिन अभी बाकी था और बेबाक सिंह उसे खराब नहीं करना चाहते थे. अखबार मेज पर रखते हुए झोला उठाकर पैदल ही जाने लगे. पत्नी ने तुरंत टोका, ‘‘सामान क्या सर पर लायेंगे?’’ ‘‘नहीं, ट्रक पर लायेंगे’’, बेबाक सिंह ने झुंझलाते हुए कहा और बुलेट ट्रेन की तरह सरपट निकल पड़े. दुकान पर ‘अच्छे दिन’ के पोस्टर लगे हुए थे. भीड़ अच्छी-खासी थी, लेकिन मुस्कान सिर्फ दो ही जगह दिखायी दे रही थी- या तो पोस्टर में या फिर दुकानदार के चेहरे पर. ... तीन चौथाई