गुरुवार, 1 जून 2023

कैसे मान लूं... आप नहीं रहे तुषार भाई....

तस्वीर धुंधली है, लेकिन यादें चमकदार और एकदम स्पष्ट। तीन दिन बीत गए... हफ्ते और महीने बीत जाएंगे... साल भी बीत जाएंगे... लेकिन, यह यकीन करना कठिन होगा कि मेरा यार मुझसे बहुत दूर चला गया। मैं ही नहीं, मेरे जैसे सैकड़ों लोगों इस मनहूस खबर को शायद दिल से कभी स्वीकार नहीं कर पाएं, लेकिन संवेदनाओं और भावनाओं से अप्रभावी व तटस्थ मस्तिष्क निरंतर यही समझाने का प्रयास कर रहा है कि अग्निज्वाला में भस्म बन जाने के बाद सिर्फ आत्मा बचती है,जो अमर है...अविनाशी है। 

तुषार भाई से हमारी मुलाकात तब हुई, जब मैं खुर्जा से स्थानांतरण के बाद बुलंदशहर पहुंचा था। वर्ष शायद 2003 रहा होगा। तब तुषार तिवारी दैनिक जागरण के छाया पत्रकार थे। आदरणीय कमलेश शुक्ल जी ब्यूरो प्रभारी थे। मैं उनके सहायक के रूप में वहां पहुंचा था। तुषार भाई शुक्ल सर की सरलता और ईमानदारी से प्रभावित थे। तुषार भाई के व्यक्तित्व का अक्खड़पन सहज था। मैं पत्रकारिता में नवप्रवेशु था, इसलिए चुप रहकर हालात और चीजों को समझने का प्रयास कर रहा था। तुषार भाई को भी। मैं पत्नी व बच्चे का साथ बुलंदशहर पहुंचा था और तुषार भाई अकेले रहते थे।  

चंद दिनों बाद क्राइम बीट की जिम्मेदारी मिली। यहां से हम और तुषार भाई विक्रम-बेताल बन गए। कभी वे मेरी बाइक पर, तो कभी मैं उनकी। यमुना खादर में यूपी और हरियाणा के किसानों के संघर्ष की कवरेज हो अथवा बुलंदशहर जिले के पुनर्गठन के बाद ग्रेटर नोएडा के बुलंदशहर में आने के बाद की प्रतिक्रियाओं की कवरेज का मामला... एक दिन में 200-200 किलोमीटर तक बाइक चलाई। तुषार भाई जितने अक्खड़ थे, उससे कहीं ज्यादा दयालु व परोपकारी। अपने हिस्से का खाना दान करना उनके लिए कहावत भर नहीं थी... वे अक्सर ऐसा कर दिया करते थे। 

तुषार भाई के पास सिल्वर रंग की बाइक थी, हीरो हॉन्डा स्पलेंडर। नंबर था- 'यूपी...1234'। 2006 रहा होगा। नुमाइश में हम पत्रकार चकल्लस काट रहे थे। कुछ लोग रवींद्र नाट्यशाला में कार्यक्रम देख रहे थे, तो कुछ परिवार को नुमाइश घुमा रहे थे। अचनाक तुषार भाई का फोन आया। वह हंस रहे थे। मैंने भी मजाक में पूछा- क्या देख लिया। उन्होंने कहा, कुछ देखा नहीं कुणाल जी... बाइक 123 हो गई। मुझे यह समझने में थोड़ा वक्त लग गया कि तुषार भाई अपनी बाइक चोरी होने की सूचना दे रहे हैं।  

एक दिन अचनाक बताया कि वह दैनिक जागरण छोड़ रहे हैं। फिर बताया कि नेटवर्क-18 के लिए काम करेंगे मेरठ में। कुछ दिनों तक मेरठ में रहे, लेकिन उनका मन नहीं माना। बुलंदशहर लौट आए। किस्मत देखिए कि वे बुलंदशहर लौट आए और मेरा स्थानांतरण 2007 में मेरठ हो गया। जब भी बुलंदशहर जाता, मुलाकात जरूर होती। एक लंबे अंतराल के बाद पता चला कि भाई की शादी हो गई है। मैं शिकायत करता, इससे पहले भाई ने कहा जो कुछ हुआ भूल जाइए... हम भी भूल गए हैं।

आखिरी मुलाकात जहांगीराबाद में तीन वर्ष पहले हुई थी। पत्रकार हेमंत कौशिक भाई की भतीजी की शादी में। लंबे अरसे बाद... गले मिले तो काफी देर तक वैसे ही चिपके रहे। न मुझे छोड़ने का मन कर रहा था और न उन्हें... बहुत सारी बातें करनी थीं, लेकिन उचित मौका नहीं था। हालांकि, हमने एक दूसरे की आंखों में बनते-बिगड़ते हालात को महसूस कर लिया था, पढ़ लिया था। बीच में कुछ-एक बार फोन पर बातचीत हुई। फोन से याद आया... उनका मोबाइल नंबर xxxxxxx999 हासिल करने का किस्सा। न जानें कितनी यादें... कुछ बेहद निजी। सांसों के साथ दफ्न हो जाने वाली।

आपको अलविदा नहीं कहेंगे तुषार भाई... हम आपको अपनी यादों में ओस की उन बूंदों की तरह संजो कर रखेंगे, जो अरुणिमा के साथ स्वर्णिम आभा से युक्त मन को शांति और संबल प्रदान करती हैं... ऊं शांति... ऊं शांति... ऊं शांति...