-कुणाल देव-
सोहन लाल द्विवेदी की कविता की आखिरी लाइनें 'कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती', सही मायने में जीवन, संघर्ष और विजय का फलसफा है। दरअसल, सफलता और विफलता जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू हैं। कोई जरूरी नहीं कि आपका हर प्रयास सफल ही हो, लेकिन यह भी सच है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। अक्सर आदमी संघर्ष के रास्ते से उस वक्त भटक जाता है, जब वह मंजिल के करीब होता है। इसका प्रमुख कारण है कि वह अपनी कोशिश, सफलता और विफलता की तुलना दूसरों से करने लगता है। आर्थिक मंदी की चर्चा के इस दौर में खुद को खुश रखने, उपयोगी बनाने और निराशा को मात देने के लिए जरूरी है कि आप अपने काम को बेहतर तरीके से करें। जिम्मेदारियां लें और उसे शिद्दत से निभाएं। संभव है आपकी इस विशिष्टता पर कुछ दिनों तक कोई गौर न करे, लेकिन यह तय है कि आपका यह गुण बहुत दिनों तक छिपा भी नहीं रहेगा।
सुनो कहानी...
एक व्यक्ति लॉन्ड्री चलाता था। अपने काम के सिलसिले में उसने एक गधा व कुत्ते को पाल रखा था। गधा ग्राहकों के कपड़ों को नदी तक पहुंचाता और ले आता तो कुत्ता घर की रखवाली करता। चूंकि गधा कारोबार का हिस्सा था और ज्यादा काम करता था तो मालिक उसकी चिंता ज्यादा करता था। उसके खानपान पर खास ध्यान देता था। यह बात कुत्ते को बुरी लगती थी। धीरे-धीरे कुत्ते के मन में यह बात बैठ गई कि मालिक उसके साथ भेदभाव करता है। वह अनमना रहने लगा। एक रात लॉन्ड्री मालिक के घर चोर घुस आए। कुत्ते ने चोरों को देखा, लेकिन चुप बैठा रहा। गधे ने कुत्ते को उसकी जिम्मेदारी की याद दिलाते हुए कहा कि उसे भौंकना चाहिए। इस पर कुत्ते ने कहा कि मालिक तुम्हें ज्यादा चाहता है। इसलिए, तुमसे जो कुछ भी हो सकता हो करो। मैं नहीं भौंकता। गधे से नहीं रहा गया। वह जोर से ढेंचू-ढेंचू करने लगा। उसकी आवाज सुनकर मालिक की नींद खुल गई और चोर भाग गए। मालिक ने घर में सब कुछ सही सलामत पाया तो उसने गुस्से में गधे की पिटाई कर दी। कुत्ता बहुत खुश हुआ और कहा- जिसका काम उसी को साजे, दूसरा करे तो डंडा बाजे।
कहानी अभी बाकी है...
लॉन्ड्री मालिक के यहां कई बार चोरी के प्रयास हुए और गधे ने हर बार ढेंचू-ढेंचू करके चोरों को भगा दिया। लेकिन, इनाम की बजाय हर बार उसे पिटाई मिलती और कुत्ता हर बार खुश होकर उसे चिढ़ाता। लॉन्ड्री मालिक ने तो गधे को पागल मानते हुए उसके विकल्प की तलाश भी शुरू कर दी थी। गधे ने तय किया कि अबकी बार चोर आएंगे तो वह शोर कतई नहीं मचाएगा। कुछ दिनों बाद लॉन्ड्री मालिक के घर चोर फिर घुस आए। इस बार कुत्ता मजे लेते हुए गधे को शोर करने के लिए उकसाने लगा, लेकिन वह चुप रहा। चोर काफी देर तक घर में रुके और सामान समेटकर जाने लगे। तब गधे से नहीं रहा गया। अपने मालिक का नुकसान बचाने के लिए उसने ढेंचू-ढेंचू करना शुरू कर दिया। चोर सामान छोड़कर भाग गए। मालिक की नींद खुली और डंडा लेकर गधे की पिटाई के लिए निकला। लेकिन, जब उसकी नजर घर खुले दरवाजे पर पड़ी और वह ठिठक गया। बाहर निकलकर देखा तो पास में ही गठरियां दिखाई दीं, जिसमें उसके घर के सामान थे। मालिक माजरा समझ गया। इस बार पिटाई की बारी कुत्ते की थी। उसने न सिर्फ कुत्ते की पिटाई की, बल्कि उसे भगाकर उसकी जगह पर दूसरे कुत्ते को पाल लिया।
सही समय पर सही काम
गधे की मंशा शुरू से ठीक थी। वह काम भी ठीक कर रहा था, लेकिन बदले में मिल क्या रहा था- डंडे। दरअसल, गधा जो काम कर रहा था, वह उसकी जिम्मेदारी से अलग था। इसलिए, वह काम तो सही कर रहा था, लेकिन उसकी जिम्मेदारी न होने के कारण उसका मालिक ध्यान न देते हुए गलत मतलब निकाल ले रहा था। गधे के पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था, जिससे वह अपनी वफादारी और कर्मठता को साबित कर पाता। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि गधा सही काम सही समय पर नहीं कर रहा था, जिससे उसे इनाम के बदले डंडे मिलते रहे। आखिरी दिन चोर आने पर जब गधे ने सही समय पर शोर मचाया, तब उसके पास अपनी वफादारी और कर्मठता साबित करने के लिए प्रमाण थे। इसलिए, उसे और उसके काम को सम्मान मिला।
जो कर सकते हैं, जरूर करें
मेरठ के एक बड़े संस्थान में प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. विनीत कौशिक कहते हैं कि घर, ऑफिस या समाज आप कहीं भी हों खुद को दायरे में न बांधें। जो सही लगता हो और आप जो कर सकते हों जरूर करें। कुछ दिनों तक लोग आपके काम की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करेंगे, लेकिन जब उन्हें आपके पोटेंशियल का एहसास होगा वे आपका सम्मान करने लगेंगे। किसी भी काम के तुरंत परिणाम की उम्मीद न करें। कई बार किसी काम में लंबा समय लग जाता है। समय-समय पर खुद का और अपने काम का आकलन करते रहें। जब कभी कोई दुविधा हो तो परिवार, मित्र व विषय के जानकारों से चर्चा करें। मन में शंका की कोई गुंजायश कभी न छोड़ें और बेहतर परिणाम की उम्मीद बनाए रखें।
सोहन लाल द्विवेदी की कविता की आखिरी लाइनें 'कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती', सही मायने में जीवन, संघर्ष और विजय का फलसफा है। दरअसल, सफलता और विफलता जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू हैं। कोई जरूरी नहीं कि आपका हर प्रयास सफल ही हो, लेकिन यह भी सच है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। अक्सर आदमी संघर्ष के रास्ते से उस वक्त भटक जाता है, जब वह मंजिल के करीब होता है। इसका प्रमुख कारण है कि वह अपनी कोशिश, सफलता और विफलता की तुलना दूसरों से करने लगता है। आर्थिक मंदी की चर्चा के इस दौर में खुद को खुश रखने, उपयोगी बनाने और निराशा को मात देने के लिए जरूरी है कि आप अपने काम को बेहतर तरीके से करें। जिम्मेदारियां लें और उसे शिद्दत से निभाएं। संभव है आपकी इस विशिष्टता पर कुछ दिनों तक कोई गौर न करे, लेकिन यह तय है कि आपका यह गुण बहुत दिनों तक छिपा भी नहीं रहेगा।
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14 अक्टूबर को दैनिक जागरण में प्रकाशित |
सुनो कहानी...
एक व्यक्ति लॉन्ड्री चलाता था। अपने काम के सिलसिले में उसने एक गधा व कुत्ते को पाल रखा था। गधा ग्राहकों के कपड़ों को नदी तक पहुंचाता और ले आता तो कुत्ता घर की रखवाली करता। चूंकि गधा कारोबार का हिस्सा था और ज्यादा काम करता था तो मालिक उसकी चिंता ज्यादा करता था। उसके खानपान पर खास ध्यान देता था। यह बात कुत्ते को बुरी लगती थी। धीरे-धीरे कुत्ते के मन में यह बात बैठ गई कि मालिक उसके साथ भेदभाव करता है। वह अनमना रहने लगा। एक रात लॉन्ड्री मालिक के घर चोर घुस आए। कुत्ते ने चोरों को देखा, लेकिन चुप बैठा रहा। गधे ने कुत्ते को उसकी जिम्मेदारी की याद दिलाते हुए कहा कि उसे भौंकना चाहिए। इस पर कुत्ते ने कहा कि मालिक तुम्हें ज्यादा चाहता है। इसलिए, तुमसे जो कुछ भी हो सकता हो करो। मैं नहीं भौंकता। गधे से नहीं रहा गया। वह जोर से ढेंचू-ढेंचू करने लगा। उसकी आवाज सुनकर मालिक की नींद खुल गई और चोर भाग गए। मालिक ने घर में सब कुछ सही सलामत पाया तो उसने गुस्से में गधे की पिटाई कर दी। कुत्ता बहुत खुश हुआ और कहा- जिसका काम उसी को साजे, दूसरा करे तो डंडा बाजे।
कहानी अभी बाकी है...
लॉन्ड्री मालिक के यहां कई बार चोरी के प्रयास हुए और गधे ने हर बार ढेंचू-ढेंचू करके चोरों को भगा दिया। लेकिन, इनाम की बजाय हर बार उसे पिटाई मिलती और कुत्ता हर बार खुश होकर उसे चिढ़ाता। लॉन्ड्री मालिक ने तो गधे को पागल मानते हुए उसके विकल्प की तलाश भी शुरू कर दी थी। गधे ने तय किया कि अबकी बार चोर आएंगे तो वह शोर कतई नहीं मचाएगा। कुछ दिनों बाद लॉन्ड्री मालिक के घर चोर फिर घुस आए। इस बार कुत्ता मजे लेते हुए गधे को शोर करने के लिए उकसाने लगा, लेकिन वह चुप रहा। चोर काफी देर तक घर में रुके और सामान समेटकर जाने लगे। तब गधे से नहीं रहा गया। अपने मालिक का नुकसान बचाने के लिए उसने ढेंचू-ढेंचू करना शुरू कर दिया। चोर सामान छोड़कर भाग गए। मालिक की नींद खुली और डंडा लेकर गधे की पिटाई के लिए निकला। लेकिन, जब उसकी नजर घर खुले दरवाजे पर पड़ी और वह ठिठक गया। बाहर निकलकर देखा तो पास में ही गठरियां दिखाई दीं, जिसमें उसके घर के सामान थे। मालिक माजरा समझ गया। इस बार पिटाई की बारी कुत्ते की थी। उसने न सिर्फ कुत्ते की पिटाई की, बल्कि उसे भगाकर उसकी जगह पर दूसरे कुत्ते को पाल लिया।
सही समय पर सही काम
गधे की मंशा शुरू से ठीक थी। वह काम भी ठीक कर रहा था, लेकिन बदले में मिल क्या रहा था- डंडे। दरअसल, गधा जो काम कर रहा था, वह उसकी जिम्मेदारी से अलग था। इसलिए, वह काम तो सही कर रहा था, लेकिन उसकी जिम्मेदारी न होने के कारण उसका मालिक ध्यान न देते हुए गलत मतलब निकाल ले रहा था। गधे के पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था, जिससे वह अपनी वफादारी और कर्मठता को साबित कर पाता। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि गधा सही काम सही समय पर नहीं कर रहा था, जिससे उसे इनाम के बदले डंडे मिलते रहे। आखिरी दिन चोर आने पर जब गधे ने सही समय पर शोर मचाया, तब उसके पास अपनी वफादारी और कर्मठता साबित करने के लिए प्रमाण थे। इसलिए, उसे और उसके काम को सम्मान मिला।
जो कर सकते हैं, जरूर करें
मेरठ के एक बड़े संस्थान में प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. विनीत कौशिक कहते हैं कि घर, ऑफिस या समाज आप कहीं भी हों खुद को दायरे में न बांधें। जो सही लगता हो और आप जो कर सकते हों जरूर करें। कुछ दिनों तक लोग आपके काम की व्याख्या अलग-अलग तरीके से करेंगे, लेकिन जब उन्हें आपके पोटेंशियल का एहसास होगा वे आपका सम्मान करने लगेंगे। किसी भी काम के तुरंत परिणाम की उम्मीद न करें। कई बार किसी काम में लंबा समय लग जाता है। समय-समय पर खुद का और अपने काम का आकलन करते रहें। जब कभी कोई दुविधा हो तो परिवार, मित्र व विषय के जानकारों से चर्चा करें। मन में शंका की कोई गुंजायश कभी न छोड़ें और बेहतर परिणाम की उम्मीद बनाए रखें।
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