गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

सहेजें संबंधों की पूंजी

-कुणाल देव-

केशुब महिंद्रा व आनंद महिंद्रा की कंपनी ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ को भला कौन नहीं जानता होगा। यह जानना और भी दिलचस्प है कि कंपनी का यह मूल नाम नहीं है। आजादी से पहले शुरू हुई इस कंपनी का मूल नाम ‘महिंद्रा एंड मुहम्मद’ हुआ करता था। जी हां, इस कंपनी की शुरुआत यारी-दोस्ती और संबंधों की एक लंबी और प्रेरक दास्तां है। मुहम्मद का पूरा नाम गुलाम मलिक मुहम्मद था। महिंद्र व मुहम्मद घरानों में दांत काटे की दोस्ती थी। इसी दोस्ती ने वर्ष 1945 में पंजाब के लुधियाना में ‘महिंद्रा व मुहम्मद’ नाम से एक कंपनी को जन्म दिया। तब यह कंपनी स्टील का कारोबार करती थी। काम तेजी से चल निकला। इस बीच देश आजाद हुआ, लेकिन दो टुकड़ों में। देश के इस विभाजन ने ‘महिंद्रा एंड मुहम्मद’ से मुहम्मद को छीन लिया। दरअसल, गुलाम मुहम्मद पाकिस्तन चले गए और वहां के पहले वित्त मंत्री बने। इधर, मुहम्मद के जाने के बाद खाली जगह को महिंद्रा से भर दिया गया। इस प्रकार ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ के रूप में नई कंपनी का जन्म हुआ।
09  सितंबर 2019 को दैनिक जागरण में प्रकाशित 

सबसे महत्वपूर्ण, बड़ा और जरूरी निवेश

आपके संबंध सबसे महत्वपूर्ण, बड़ा और जरूरी निवेश भी होते हैं। फिल्म दीवार ने यश चोपड़ा और अमिताभ बच्चन को करियर की ऊंचाई पर ला खड़ा किया। वक्त बीतता गया और दोनों ने एक साथ कई फिल्में कीं। एक वक्त ऐसा भी आया, जब अमिताभ के पास इतना काम आ गया था कि 24 घंटे भी कम पड़ने लगे थे। लेकिन, जब एबीसीएल के साथ उनकी सारी पूंजी खत्म हो गई और यहां तक कि उन्हें अपने दोनों बंगले-जलसा व प्रतीक्षा गिरवी रखने पड़े तो एक वक्त ऐसा भी आया कि अमिताभ के पास कोई काम नहीं था। करोड़ों के कर्ज में दबे अमिताभ ने नई शुरुआत करने की ठानी और पूरे भरोसे के साथ एक सुबह काम मांगने यश चोपड़ा के पास पहुंच गए। यहीं अमिताभ को फिल्म मोहब्बतें मिली और एक बार फिर उनके करियर की गाड़ी चल निकली।

कभी खत्म न होने वाली पूंजी

वास्तव में आपके संबंध कभी न खत्म होने वाली पूजी होते हैं। हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का निधन हुआ। यह अनायास नहीं था कि विरोधी दलों से लेकर तमाम वर्गों के दिग्गज उनके साथ बिताए व्यक्तिगत पलों को याद कर रहे थे। कॉलेज के दिनों में वह किसी के लिए बड़े भाई बने तो राजनीति में उन्होंने दलगत भावना से ऊपर उठकर काम किया। सामाजिक जीवन में भी वह कभी पीछे नहीं हटे। अपनी पार्टी के लिए तो वह बड़े स्तंभ थे ही। कुल मिलाकर एक लाइन में कहें तो उनके संबंधों की परिधि बहुत बड़ी थी। संबंधों को निभाते हुए उन्होंने कई को आगे बढ़ने में मदद की तो कई ने उनके संबंधों को इज्जत देते हुए उन्हें आगे बढ़ाया।

मनोबल की मजबूती का आधार

आपके संबंध सीधे तौर पर अगर कुछ न भी दें तब भी रोजाना बहुत कुछ दे जाते हैं। आप संबंधों के जितने धनी होंगे आपका मनोबल और आत्मविश्वास उतना ही मजबूत होगा। आपके अंदर यह भरोसा होगा कि अगर कुछ बिगड़ता भी है तो आपके रिश्ते-नाते, दोस्त-यार मिलकर उसे संभाल लेंगे। यह भरोसा आपको दूसरे लोगों से अलग करते हुए काम में कुशलता लाने का रास्ता खोलता है। प्रोफेशनल जीवन में अक्सर लोग एक पड़ाव पर आकर चुनौतियों का सामना करने से बचते हैं। कारण है कि उनके ऊपर जिम्मेदारियां आ जाती हैं और वह हासिल चीजों को खोने से डरने लगते हैं। लेकिन, जब आपको भरोसा होता है कि आपके पीछे आपकी बिगड़ी बनाने वाले कई लोग हैं तो आप चुनौतियों का सामना करने से नहीं डरते।

दिखाते हैं नये रास्ते

संस्कृत में एक कहावत है-सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यं अप्रिय। प्रियं च नानृतं ब्रूयात, एष धर्मः सनातनः।। यानी, सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य लेकिन अप्रिय नहीं बोलना चाहिए। प्रिय लेकिन असत्य नहीं बोलना चाहिए, यही सनातन धर्म है। प्रोफेशनल लाइफ में यह बहुत ही जरूरी हो जाता है। प्राइवेट ही नहीं, सरकारी नौकरी में भी आपकी वाणी संबंध बनाती है और संबंध तरक्की के द्वार खोलते हैं। प्राइवेट सेक्टर में तो कोई भी कंपनी उन्हीं लोगों को प्राथमिकता देती है जो पहले आजमाए जा चुके हों। ऐसे में आपके व्यक्तिगत संबंध ही इस बात की गारंटी देते हैं कि बंदा काम का है।

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उम्मीदों को न बनने दें बोझ

-कुणाल देव-

जरा सोचिए, दाल में नमक न हो, चाय में चीनी न हो और रसमलाई में रस न हो तो क्या होगा? ऐसे ही दाल में नमक ज्यादा हो, चाय में बेहिसाब चीनी हो और रसमलाई में रस ही रस हो तो क्या होगा? जवाब आप सब जानते हैं- स्वाद खत्म हो जाएगा। जिंदगी भी इन पकवानों की जैसी ही। जब भी कोई तत्व कम या ज्यादा हो जाता है, इसकी रफ्तार गड़बड़ा जाती है। पिछले दिनों कैफे कॉफी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ की आत्महत्या ने न सिर्फ कारपोरेट जगत, बल्कि आम लोगों को भी हिला दिया। यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सिद्धार्थ ने आत्महत्या क्यों की? वह कर्ज में दबा आम किसान नहीं थे। फेल होने से डरने वाले नासमझ छात्र भी नहीं थे। वह तो बड़े अचीवर थे। पिता से मिली पांच लाख की पूंजी को मल्टीनेशनल रेस्तरां चेन में बदल चुके थे। फिर उन्हें किस बात की चिंता थी? किस बात का डर था?
26 अगस्त 2019 को दैनिक जागरण में प्रकाशित

गड़बड़ाने न दें जिंदगी का इंग्रीडेंट्स

दरअसल, सिद्धार्थ ही नहीं कोई भी ऐसा तभी करता है, जब उसकी जिदंगी के पकवान का इंग्रीडेंट्स गड़बड़ा जाता है। इंग्रीडेंट्स का आधारभूत तत्व ‘उम्मीद’ अपना आकार बढ़ाता हुआ संघर्ष, समझ और संयम को निष्क्रिय करने लगता है। वह अपना स्वरूप बदलते हुए धीरे-धीरे अव्यावहारिक लक्ष्य, लालच व नासमझ जिद मं’ तब्दली हो जाता है और व्यक्ति को इसका एहसास भी नहीं होता। इस अवस्था में इंसान सार्वभौमिक सत्य से भी दूर होता चला जाता है। वह यह नहीं समझ पाता कि दिन व रात की तरह सफलता और विफलता भी जिंदगी के अनिवार्य तत्व हैं। ऐसा कभी हो नहीं सकता कि जिंदगी में सिर्फ सफलता मिले और ऐसा भी नहीं हो सकता कि जिंदगी में विफलता ही मिलती रहे। इसिलए, जिंदगी के पकवान के इंग्रीडेंट्स को संतुलित रखने की कोशिश करें। उम्मीद बहुत जरूरी हैं, लेकिन उसे इतना भी महत्व न दें कि वे बोझ बन जाए।

विफलताओं की समीक्षा करें, कोशिश जारी रखें

कल्पना कीजिए, अमिताभ बच्चन अॉल इंडिया रेडियो से रिजेक्ट नहीं किए जाते तो महानायक कैसे बनते? केएफसी के संस्थापक कर्नल हारलैंड सांडर्स को 65 साल की उम्र तक सफलता के लिए इंतजार करना पड़ा। चिकेन बनाने की रेसिपी को स्वीकार किए जाने से पहले उन्हें 1009 होटल मालिकों से ना सुनना पड़ा था। मशहूर उपन्यास सीरीज हैरी पॉर्टर की लेखिका जेके रोलिंग को तो जानते ही होंगे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया और 30 वर्ष की उम्र तक तो उन्हें गर्भपात, शादी व तलाक जैसे कई दर्द से गुजरना पड़ा। लेकिन, इसके बाद एक यात्रा के दौरान ट्रेन लेट हुई और वहीं इंतजार करते हुए हैरी पॉटर का आइडिया उनके दिमाग में आया। 35 साल की उम्र तक वह हैरी पॉटर सीरीज के पांच उपन्यास लिखकर अॉथर अॉफ द इयर का खिताब पा चुकी थीं। कहने का मतलब है कि विफलताओं से कभी मत घबराइए। लगातार मिल रही हैं तब भी। उनकी समीक्षा करते रहिए। क्या पता किस विफलता में सफलता का ऐसा सूत्र छिपा हो कि आप अगले ही दिन करियर के फलक पर हों।

खुद से खुद की तुलना कीजिए, दूसरों से नहीं

झारखंड के जमशेदपुर शहर से आप जरूर वाकिफ होंगे। वहां मुझे 2010 से 2017 तक रहने का अवसर मिला। औद्योगिक शहर होने के कारण वहां जिंदगी की रफ्तार भी बड़े महानगरों की तरह तेज है। लोगों के मन में उम्मीदों और अपेक्षाओं का पहाड़ बहुत जल्द ही खड़ा हो जाता है। पड़ोसी की नई कार देख व्यक्ति खुद को बेवजह छोटा महसूस करने लगता है। अभिभावक उम्मीद करने लगते हैं कि पड़ोसी का बेटा बोर्ड परीक्षा में अगर 90 फीसद नंबर लाता है तो मेरे बेटे को इससे कम कतई नहीं लाना चाहिए। उम्मीदों का बोझ इतना बढ़ जाता कि उसे हासिल करने का दबाव कई बार दम लेकर मानता। बोर्ड परीका के बाद छात्रों की आत्महत्या सिलसिला शुरू हो जाता । हालात विकराल होता देख शहर की कुछ संस्थाओं ने इस दिशा में पहल की। अपनी क्लीनिक के साथ-साथ स्कूलों और संस्थानों में काउंसिलिंग शुरू की और आज शहर में आत्महत्या की घटनाएं बेहद कम हो गई हैं। जीवन के संस्थापक सदस्य व काउंसलर महावीर राम का मानना है कि दूसरों से की गई तुलना या प्रतिस्पर्धा अक्सर आपको दुख पहुंचाती है। उम्मीदें पूरी नहीं होने पर मिलने वाली निराशा कई बार हताशा से भी आगे निकल जाती है और आत्महत्या का कारण बनती है। इसलिए, हमेशा लक्ष्य को पाने की कोशिश करें और खुद से खुद की तुलना करें। खुद को आंके कि कल आप कहां थे और आज कहां हैं। यकीन मानिए, आप पाएंगे कि अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं और बेहतर हो रहे हैं।

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