डैम, विस्थापन, पुनर्वास, दिकू, जल, जंगल, जमीन, सीआरपीएफ कैंप, रोजगार, माइंस, क्रशर, प्रदूषण, विकिरण...मुद्दे कई हैं। ग्रामीणों के लिए भी और उनके नुमाइंदों के लिए
भी। ग्रामीण इन मुद्दों का हल चाहते हैं और नुमाइंदे इन पर बल।
ऐसा नहीं कि ये मुद्दे स्थानीय हैं। बल्कि, हकीकत तो यह है कि ये मुद्दे स्थानीय होते हुए भी प्रदेश से लेकर दिल्ली
तक की रजानीति के द्वार खोलते हैं। आजादी के बाद इन मुद्दों ने कई लोगों को राज्य
से लेकर दिल्ली तक की गद्दी नसीब करा दी लेकिन, कुबेर के आशीर्वाद से इनमें रत्ती भर की कमी नहीं आई। आजादी से पहले भी
यहां मुद्दे यही थे और आज पैंसठ साल बाद भी यही हैं...