जिंदगी! मुझको यहां बहुत तड़पाए है, (कवि मन)
दूरियां बढ़ गईं फिर भी याद आए है।
कैसे भूला दूं ममता की छांव,
वो मंदिर सा घर, वो स्वर्ग सा गांव,
भूलना नहीं आसान इतना,
आते रहे याद चाहा मैं जितना,
बरसात में उमड़ते वो कारे बादल,
जाड़े के दिन की सूरज की लाली,
पतझड़ के दिनों में नंगा सा पीपल,
साव के मौसम की हरियाली,
कैसे भूला दूं लोगों का प्यार,
वो ममता का आंचल, वे बचपन के यार,
चाहूं मैं फिर भी भुलाई न जाए है,
जिंदगी! मुझको यहां बहुत तड़पाए है।
कल-कल कर बहती नदिया की धारा,
नन्हे-मुन्ने बच्चों का मुखड़ा वो प्यारा,
स्वर्ण सी चमकती नदिया की रेत,
खुशी के द्योतक वे गेहूं के खेत,
बाबुल के संग, नाहर पर घुमना,
कभी मस्त पेड़ों की डालों पर झुमना,
जरा चोट लगने पर मां का रोना,
बापू का मन ही मन विह्वल होना,
राखी के दिन वो बहना का प्यार,
जिस पे लुटा दूं मैं खुशियां हजार,
वे खुशियों के दिन जो साथ बिताए
गम में वे सभी याद आए हैं
जिंदगी! मुझको यहां बहुत तड़पाए है।