चार दिसंबर, 2022 को अवंतिकानाथ श्री महाकाल के प्रथम अलौकिक दर्शन और श्री महाकाल लोक की भव्यता देख प्रफुल्लित मन से हम सभी जल्दी सो गए। पांच दिसंबर को सुबह करीब साढ़े चार बजे उठे और जल्दी-जल्दी तैयार होने लगे। पांच बजे फोन मिलाया तो अभिषेक यादव जी भी तैयार हो रहे थे। आधे घंटे उनका फोन आया कि होटल के पास जाम न लग जाए, इसलिए मैंने गाड़ी चौराहे पर पार्क कर दी है। पास में ही मंदिर है, किसी से पूछ लीजिएगा बता देगा।
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चौबीस खंभा माता मंदिर के पास मां, पत्नी व देवांश... |
पुरुष सदस्य, यानी मैं और
देवांश तैयार हो चुके थे, तो सोचा यात्रा से पहले थोड़ी-थोड़ी चाय पी ली जाए। तैयारियों
के बीच उस चौराहे और मंदिर का नाम भूल गया, जिसके बारे में अभिषेक जी ने बताया था।
अपने होटल से बाहर निकला, तो एक दुकान पर कुछ लोग खड़े दिखाई दिए। मैंने देवांश को
उन लोगों से बारह खंभा माता मंदिर के बारे में पूछने को कहा। बताने वाले भी काफी
दिलचस्प थे। उन्होंने उल्टा सवाल दाग दिया, तुम्हें जाना कहां है। बारह खंभा माता
मंदिर या चौबीस खंभा माता मंदिर। देवांश दुविधा में दिखाई दिए, तो पीछे से मैंने कहा-
कुछ श्योर नहीं हूं। ऐसा कोई मंदिर है, आप ही बता दीजिए... प्लीज।
मेरे बैकफुट पर आता देख उन
सज्जन का अंदाज-ए-बयां और दिलचस्प हो गया। अमां यार, बारह खंभे क्यों घटा दिए भाई।
उनका खंभा तो मुगलों व अंग्रेजों तक नहीं तोड़ पाए और तुम सीधा बारह खंभा कम कर दिए
भाई यार। ये तो ठीक नहीं है भाई यार... इससे पहले कि वह रौ में कुछ और कह पाते, एक
अन्य सज्जन ने बीच में ही कहा- आप नीचे उतर जाओ और दाएं मुड़ जाना। वहीं माता का
मंदिर है। सुबह की शुरुआत दिलचस्प हुई थी। माता मंदिर के पास पहुंचा तो अभिषेक जी
से मुलाकात हुई। हम चौबीस खंभा माता मंदिर के पास ही खड़े थे। मंदिर किसी पुराने किले
का द्वार जैसा था, जिसके ऊपर के हिस्से थोड़े क्षतिग्रस्त हो गए थे। बड़ा सा ग्लो
साइनबोर्ड लगा हुआ था, जिसके कारण हम सुबह उस क्षतिग्रस्त हिस्से को नहीं देख पाए।
पास में ही एक बुजुर्ग चाय
की टपरी लगाए हुए थे। सोचा, जबतक महिलाएं गाड़ी तक पहुंचती हैं, तबतक थोड़ी-थोड़ी
चाय पी ली जाए। अमूमन फीकी चाय बनाने में दुकानदार ना-नुकुर करते हैं, लेकिन वे एक
कप फीकी चाय बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। चाय भी लाजवाब थी। दो कप लगातार
पी ली। फ्लास्क भरवा लिया और देवांश की मां भी चाय पीकर खुश हो गईं। वह मुझसे
ज्यादा चाय की शौकीन हैं। चाय पीने के क्रम में बुजुर्गवार ने बताया कि चौबीस खंभा
माता मंदिर की महिमा का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि महाराज विक्रमादित्य
भी महाष्टमी के दिन के भंडारे का प्रसाद खुद पकाते थे। उन्हें बड़ी माता व छोटी
माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। वह परंपरा आज भी कायम है। आज भी जिले के कलेक्टर
महाष्टमी के दिन खुद भंडारे का प्रसाद बनाते हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र, दोनों
में। पहले यही श्री महाकाल मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार होता था, लेकिन अब इसके
पीछे उज्जैन का मुख्य बाजार, यूं कहें मंडी बस गई है।
हमें ओंकारेश्वर व ममकेश्वर
महादेव के दर्शन की जल्दी थी। श्री ओंकारेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग में
शुमार हैं। अभिषेक जी ने बताया कि दोपहर में श्री ओंकारेश्वर महादेव का कपाट एक
घंटे के लिए बंद हो जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि हम जल्दी वहां पहुंच जाएं।
निकलते थोड़ी देर हो गई थी और कुछ दूर तक सड़क भी खराब थी, इसलिए पहुंचने में 10
बज गए। बीच में अभिषेक जी से मध्य प्रदेश की संस्कृति और राजनीति पर लंबी वार्ता
हुई, जिस पर अगली कड़ी में चर्चा करेंगे। फिलहाल, इतना कि चौबीस खंभा माता मंदिर के
बारे में गूगल पर जानकारी हासिल करने का प्रयास किया तो कुछ ज्यादा जानकारी हासिल
नहीं हो सकी। महाराज विक्रमादित्य के काल व श्री महाकाल मंदिर के इतिहास में साम्य
को लेकर मतभेद सामने आया, लेकिन एक तथ्य ज्यादातर जगहों पर समान मिला कि मंदिर की
दोनों माताएं महामाया व महाल्या हैं। शक्ति स्वरूपा दोनों माताओं को श्री महाकाल
वन और नगरी का रक्षक माना जाता है। हम इतिहास और आस्था की तुलना नहीं कर रहे,
क्योंकि जब भी ऐसी स्थिति आएगी इतिहास को हारना होगा। जन आस्था के आगे इतिहास कई
बार बौना पड़ जाता है। वैसे भी, सनातन संस्कृति व परंपरा इतनी पुरानी और विशाल है
कि कागज के पन्नों में उन्हें दर्ज कर पाना कभी भी सहज नहीं हो पाएगा। इसीलिए,
हमारे वेद जैसे पुरातन ग्रंथों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति यानी श्रव्य यानी
सुना हुआ। हमारी परंपरा व आस्था की जड़ें कितनी गहरी हैं, उसका अंदाजा इस बात से
लगाया जा सकता है कि कई आक्रांताओं के बावजूद यह हजारों हजार साल पुरानी श्रुति
परंपरा न सिर्फ पूरी आन-बान-शान से जिंदा है, बल्कि पुष्पित-पल्लवित हो रही है... (क्रमशः)