बुधवार, 28 दिसंबर 2022

श्री ओंकारेश्वर व श्री ममकेश्वर महादेव

श्री ओमकारेश्वर महादेव मंदिर में पंक्तिबद्ध
चौबीस खंभा माता मंदिर चौराहे पर चाय पीने के बाद हम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार श्री ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन के लिए निकल पड़े। आगरा-मुंबई हाईवे से इंदौर तक जाना था, जहां से श्री ओंकारेश्वर के लिए अलग रास्ता निकलता है। हाईवे के किनारे थोड़ी दूरी पर स्थित पहाड़ियों की ओट से सूर्योदय का दृश्य मन मोह रहा था। धान की कटाई हो चुकी थी, तो खेत लगभग खाली थे। कुछ में सब्जियां आदि लगाई गई थीं। कुछ जगहों पर कपास के खेत भी दिखाई दिए। बचपन में हमने अपने इलाके में कपास के कुछ पौधों व छोटे पेड़ों को देखा था, जिनमें फूल कम ही हुआ करते थे और जो होते थे वे थोड़े बड़े होते थे। यह कपास उससे अलग था। पौधे छोटे थे, फूल खूब लगे हुए थे और छोटे-छोटे फलों में रूई तैयार हो रही थी। इंदौर से जब हम श्री ओंकारेश्वर यानी खंडवा जिले की तरफ बढ़े, तब मिर्च की खेती भी दिखाई दी। कई जगहों पर सड़क किनारे लोग लाल मिर्च बेच भी रहे थे। मन तो खूब हुआ रुककर मिर्च के बारे में जानकारी हासिल करने और कुछ खरीदने का, लेकिन अपने मतलब की नहीं थी, इसलिए मस्तिष्क का निर्णय भारी पड़ गया और हम उन ठीहों को निहारते हुए आगे बढ़ते गए। 

रास्ते में भैरव घाटी आई, जिसके मोड़ काफी तीखे थे। जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। हमारे सारथी
अभिषेक यादव जी ने बताया कि घाटी के तीखे मोड़ और संकरी सड़क से निजात पाने के लिए बिल्कुल पास से ही सीधी सड़क बनाई जा रही है। हमने देखा भी कि सड़क निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। इंदौर की प्यास बुझाने के लिए श्री ओंकारेश्वर से इंदौर तक बड़ी पाइपलाइन डाली गई है, जिससे नर्मदा नदी का पानी मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी तक पहुंचता है। पाइपलाइन लगभग पूरे रास्ते हमारे समानांतर चलती रही। बीच में रेलवे की मीटरगेज लाइन दिखाई दी। वह रेललाइन अब भी प्रचलन में है और यात्री ट्रेनें इंदौर के पास के एक स्टेशन से खंडवा तक जाती हैं।

अभिषेक जी काफी सुलझे हुए इंसान व कामयाब कारोबारी हैं। उनका टूर एंड ट्रैवल का काम तो है ही, साथ ही और भी कई काम करते हैं। राजनीति में भी रूचि रखते हैं, लेकिन अपना पक्ष जहां तक संभव हो जाहिर नहीं होने देते। मध्य प्रदेश की राजनीति पर बात तो होनी ही थी। मैंने छेड़ दिया- मामाजी कैसा कर रहे हैं। अभिषेक जी ने हंसते हुए कहा- अच्छा कर रहे हैं सर। ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़ दें, तो उन्हें भाजपा में कोई टक्कर नहीं देने वाला। हालांकि, वे कह चुके हैं कि इस बार वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। ...और राहुल जी की यात्रा, जो दो दिनों पहले ही उज्जैन से गुजरी है... मैंने बीच में काटते हुए कहा। अभिषेक जी खुलकर हंसे और कहा, एमपी में तो उनका कुछ नहीं होने वाला। पार्टी भी अच्छी पोजीशन में नहीं है। धड़ों में बंटी हुई है। उत्तर प्रदेश व बिहार में यादवों का राजनीति में अच्छा-खासा हस्तक्षेप है, लेकिन मध्य प्रदेश में कोई बहुचर्चित यादव चेहरा नहीं दिखाई देता, ऐसा क्यों? अभिषेक जी कहते हैं, दिखाई नहीं देता, लेकिन मंत्री तो हैं। आधा दर्जन से ज्यादा विधायक भी हैं। कई सीटों पर यादव निर्णायक स्थित में हैं, लेकिन यूपी-बिहार की तरह शोर नहीं मचाते।
श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के भीतर की नक्काशी 

खेती-बाड़ी, आजीविका व रहन-सहन के मुद्दे पर थोड़ी-थोड़ी बातें होती रहीं और रास्ता कटता रहा। करीब 10 बजे हम श्रीओंकारेश्वर पहुंच गए। नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर एक समृद्ध गांव जहां भगवान भोलेनाथ की कृपा प्रत्यक्ष दिखाई देती है। श्री ओंकारेश्वर और आसपास की पूरी अर्थव्यवस्था आस्था पर आधारित है। 
अभिषेक जी ने हमें श्री ममकेश्वर मंदिर के पास छोड़ा और गाड़ी से उतरते ही पंडे पीछे पड़ गए। मैंने उन्हें मीठे शब्दों में टालने की कोशिश की, लेकिन वे दर्शन कराने के लिए न्यूनतम दक्षिणा की शर्त पर उतारू हो गए। आखिरकार मुझे कहना ही पड़ा कि भक्त और भगवान के बीच किसी तीसरे का क्या काम। हम खुद दर्शन कर लेंगे और जितने भी शुद्ध-अशुद्ध मंत्र आते हैं, उन्हीं से भगवान की आराधना कर लेंगे। अभिषेक जी ने बता दिया कि सीढि़यों से नीचे उतर जाइए। मोटरयुक्त नौकाएं मिलेंगी, उन्हीं से नर्मदा पार कर लीजिएगा। हमें लगा कि लोटा खरीद लेना चाहिए, जिससे श्री ओंकारेश्वर महादेव को जल चढ़ा लेंगे। तांबे का लोटा खरीदा और एक छोटा सा केन भी, जिसमें पवित्र नर्मदा का जल संग्रहीत करने की इच्छा थी। नाव जब चली तो हमने लोटे में नर्मदा जल भरने का प्रयास किया, लेकिन धारा इतनी तेज थी कि अपने साथ लोटे को भी बहा ले गई। 

खैर, तट पर उतरते ही पूजन सामग्री वाली दुकान से तीन लोटे मुफ्त में मिल गए, जिन्हें जल चढ़ाने के बाद लौटा
देना था।  पूजन सामग्री की दुकान पर फिर एक बार पंडों ने दर्शन और संकल्प करवाने का प्रस्ताव दिया, जिसे हम विनम्रता से खारिज करते रहे। श्री ओंकारेश्वर मंदिर में लाइन लंबी थी, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। हमें उम्मीद थी कि आधे घंटे में हमारी बारी आ जाएगी। हुआ भी ऐसा ही। जलाभिषेक के लिए करघा लगा हुआ था, लेकिन कम ही लोग उस करघे में जल अर्पित कर रहे थे। सब ने प्रत्यक्ष रूप से श्री ओंकारेश्वर महादेव को जल अर्पित करने का संकल्प ले रखा था। नर्मादा नदी के तट पर स्थित मंदिर बाहर से जितनी भव्यता लिए है, उससे ज्यादा भव्यता अंदर के शिलास्तंभों पर बारीकी से उकेरी गईं कलाकृतियों पर दिखाई देती हैं, जो सहज ही मन मोह लेती हैं। 

गर्भ गृह अमूमन सभी जगह छोटा होता है, यहां भी कुछ ऐसा ही था। कुछ लोगों ने बताया कि पहले भगवान ओंकारेश्वर महादेव को छूने व जल चढ़ाने की इजाजत थी, लेकिन अब वहां शीशे की दीवार खड़ी कर दी गई है। क्षण मात्र दर्शन और चंद बूंदे अरघे में चढ़ाने का मौका मिलता है और पुजारीगण दूसरों को मौका देने की बात कहकर आगे बढ़ा देते हैं। प्रभु के दरबार में चूंकि सबको मत्था टेकने का मौका मिलना चाहिए, इसलिए क्षण मात्र भी अपने हिस्से आना बेहद सौभाग्य की बात है। दर्शन से तृप्त होकर हम बाहर निकले। अभिषेक जी ने बता दिया था कि झूला पुल से आप लौट सकते हैं और श्री ममकेश्वर महादेव के दर्शन के बाद वापस उज्जैन के लिए निकल चलेंगे। 


हम झूला पुल की तरफ बढ़े तो एक महिला को ताजे अमरूद बेचते देखा। थोड़ा चकित रह गया, जब जाना कि उनके पास तीन पाव के बाट थे। उन्होंने किसी प्रकार दो किलो अमरूद तौला। अब समस्या आई कि हमारे पास थैली नहीं थी। खैर, पास के एक दुकानदार ने थैली उपलब्ध करवा दी। श्री ममकेश्वर महादेव के पहले एक दुकान पर प्रसाद खरीदने के बाद अपने सारे सामान वहीं रख दिया। दुकान चलाने वाली महिला ने बताया कि श्री ममकेश्वर व श्री ओंकारेश्वर मिलकर एक ज्योतिर्लिंग बनते हैं। 

श्री ममकेश्वर महादेव के दर्शन के लिए ज्यादा लंबी कतार नहीं थी। लगभग 15 मिनट में हमारा नंबर आ गया।
वहां न सिर्फ शिवलिंग पर जल चढ़ाने का मौका मिला, बल्कि बिलपत्र व अन्य पूजन सामग्री भी तसल्ली से चढ़ा पाया। श्री ओंकारेश्वर व श्री ममकेश्वर महादेव के दिव्य दर्शन व पूजन-अर्चन का आलौकिक आनंद प्राप्त कर हम करीब दो बजे के आसपास फारिग हुए। लौटते वक्त श्री ओंकारेश्वर के पास ही एक लाइन होटल में अभिषेक जी ने गाड़ी रोक दी। बहुत लजीज भोजन मिला, वह भी पूरी सफाई के साथ। उज्जैन से लौटते वक्त नींद सभी लोगों पर हावी होने लगी थी। अभिषेक जी को छोड़कर सभी ने झपकी ली। शाम करीब साढ़े पांच बजे हम उज्जैन लौट आए... (क्रमशः)

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

श्री महाकाल और चौबीस खंभा माता

चार दिसंबर, 2022 को अवंतिकानाथ श्री महाकाल के प्रथम अलौकिक दर्शन और श्री महाकाल लोक की भव्यता देख प्रफुल्लित मन से हम सभी जल्दी सो गए। पांच दिसंबर को सुबह करीब साढ़े चार बजे उठे और जल्दी-जल्दी तैयार होने लगे। पांच बजे फोन मिलाया तो अभिषेक यादव जी भी तैयार हो रहे थे। आधे घंटे उनका फोन आया कि होटल के पास जाम न लग जाए, इसलिए मैंने गाड़ी चौराहे पर पार्क कर दी है। पास में ही मंदिर है, किसी से पूछ लीजिएगा बता देगा। 

चौबीस खंभा माता मंदिर के पास मां, पत्नी व देवांश...

पुरुष सदस्य, यानी मैं और देवांश तैयार हो चुके थे, तो सोचा यात्रा से पहले थोड़ी-थोड़ी चाय पी ली जाए। तैयारियों के बीच उस चौराहे और मंदिर का नाम भूल गया, जिसके बारे में अभिषेक जी ने बताया था। अपने होटल से बाहर निकला, तो एक दुकान पर कुछ लोग खड़े दिखाई दिए। मैंने देवांश को उन लोगों से बारह खंभा माता मंदिर के बारे में पूछने को कहा। बताने वाले भी काफी दिलचस्प थे। उन्होंने उल्टा सवाल दाग दिया, तुम्हें जाना कहां है। बारह खंभा माता मंदिर या चौबीस खंभा माता मंदिर। देवांश दुविधा में दिखाई दिए, तो पीछे से मैंने कहा- कुछ श्योर नहीं हूं। ऐसा कोई मंदिर है, आप ही बता दीजिए... प्लीज।

मेरे बैकफुट पर आता देख उन सज्जन का अंदाज-ए-बयां और दिलचस्प हो गया। अमां यार, बारह खंभे क्यों घटा दिए भाई। उनका खंभा तो मुगलों व अंग्रेजों तक नहीं तोड़ पाए और तुम सीधा बारह खंभा कम कर दिए भाई यार। ये तो ठीक नहीं है भाई यार... इससे पहले कि वह रौ में कुछ और कह पाते, एक अन्य सज्जन ने बीच में ही कहा- आप नीचे उतर जाओ और दाएं मुड़ जाना। वहीं माता का मंदिर है। सुबह की शुरुआत दिलचस्प हुई थी। माता मंदिर के पास पहुंचा तो अभिषेक जी से मुलाकात हुई। हम चौबीस खंभा माता मंदिर के पास ही खड़े थे। मंदिर किसी पुराने किले का द्वार जैसा था, जिसके ऊपर के हिस्से थोड़े क्षतिग्रस्त हो गए थे। बड़ा सा ग्लो साइनबोर्ड लगा हुआ था, जिसके कारण हम सुबह उस क्षतिग्रस्त हिस्से को नहीं देख पाए।

पास में ही एक बुजुर्ग चाय की टपरी लगाए हुए थे। सोचा, जबतक महिलाएं गाड़ी तक पहुंचती हैं, तबतक थोड़ी-थोड़ी चाय पी ली जाए। अमूमन फीकी चाय बनाने में दुकानदार ना-नुकुर करते हैं, लेकिन वे एक कप फीकी चाय बनाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। चाय भी लाजवाब थी। दो कप लगातार पी ली। फ्लास्क भरवा लिया और देवांश की मां भी चाय पीकर खुश हो गईं। वह मुझसे ज्यादा चाय की शौकीन हैं। चाय पीने के क्रम में बुजुर्गवार ने बताया कि चौबीस खंभा माता मंदिर की महिमा का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि महाराज विक्रमादित्य भी महाष्टमी के दिन के भंडारे का प्रसाद खुद पकाते थे। उन्हें बड़ी माता व छोटी माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। वह परंपरा आज भी कायम है। आज भी जिले के कलेक्टर महाष्टमी के दिन खुद भंडारे का प्रसाद बनाते हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र, दोनों में। पहले यही श्री महाकाल मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार होता था, लेकिन अब इसके पीछे उज्जैन का मुख्य बाजार, यूं कहें मंडी बस गई है।

हमें ओंकारेश्वर व ममकेश्वर महादेव के दर्शन की जल्दी थी। श्री ओंकारेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग में शुमार हैं। अभिषेक जी ने बताया कि दोपहर में श्री ओंकारेश्वर महादेव का कपाट एक घंटे के लिए बंद हो जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि हम जल्दी वहां पहुंच जाएं। निकलते थोड़ी देर हो गई थी और कुछ दूर तक सड़क भी खराब थी, इसलिए पहुंचने में 10 बज गए। बीच में अभिषेक जी से मध्य प्रदेश की संस्कृति और राजनीति पर लंबी वार्ता हुई, जिस पर अगली कड़ी में चर्चा करेंगे। फिलहाल, इतना कि चौबीस खंभा माता मंदिर के बारे में गूगल पर जानकारी हासिल करने का प्रयास किया तो कुछ ज्यादा जानकारी हासिल नहीं हो सकी। महाराज विक्रमादित्य के काल व श्री महाकाल मंदिर के इतिहास में साम्य को लेकर मतभेद सामने आया, लेकिन एक तथ्य ज्यादातर जगहों पर समान मिला कि मंदिर की दोनों माताएं महामाया व महाल्या हैं। शक्ति स्वरूपा दोनों माताओं को श्री महाकाल वन और नगरी का रक्षक माना जाता है। हम इतिहास और आस्था की तुलना नहीं कर रहे, क्योंकि जब भी ऐसी स्थिति आएगी इतिहास को हारना होगा। जन आस्था के आगे इतिहास कई बार बौना पड़ जाता है। वैसे भी, सनातन संस्कृति व परंपरा इतनी पुरानी और विशाल है कि कागज के पन्नों में उन्हें दर्ज कर पाना कभी भी सहज नहीं हो पाएगा। इसीलिए, हमारे वेद जैसे पुरातन ग्रंथों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति यानी श्रव्य यानी सुना हुआ। हमारी परंपरा व आस्था की जड़ें कितनी गहरी हैं, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई आक्रांताओं के बावजूद यह हजारों हजार साल पुरानी श्रुति परंपरा न सिर्फ पूरी आन-बान-शान से जिंदा है, बल्कि पुष्पित-पल्लवित हो रही है... (क्रमशः)

 

रविवार, 18 दिसंबर 2022

एक साध का पूरा होना... श्री महाकाल कृपा बनाए रखें...!

श्री महाकाल दरबार 
कोविड-19 की भीषण आपदा के कारण सामान्य जनजीवन की कई गतिविधियां बंद हो गई थीं। उन्हीं में एक था-पर्यटन। मैं अपनी गिनती उत्कंठ पर्यटकों में नहीं करता, लेकिन घूमने-फिरने, खासकर धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर जाने और उनके बारे में जानने से मन को शांति मिलती है। श्री महाकाल के दरबार में सपरिवार शीश नवाने की दिली इच्छा थी। लंबे समय से यह कामना मन में दबी हुई थी। अक्टूबर में प्रभु की प्रेरणा से इच्छी बलवती हुई और इधर-उधर से थोड़ी सी जानकारी हासिल करने के बाद पूरे परिवार का टिकट करवा लिया। मित्र श्री सूर्यनारायण जी की मदद से अन्य व्यवस्थाएं हो गईं।
चार दिसंबर, 2022 को इंदौर एक्सप्रेस से दिल्ली से उज्जैन पहुंचे। शाम में बाबा श्री महाकाल के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ऐेसे लगा जैसे जीवन धन्य हो गया हो... मन-मस्तिष्क में अपरिमित ऊर्जा का संचार हुआ। पूरा परिवार गदगद था। सूर्यास्त के बाद नवनिर्मित श्री महाकाल लोक में बत्तियां जल उठीं। अभी श्रीमहाकाल लोक के दो अन्य चरणों का निर्माण कार्य चल रहा है, इसलिए प्रवेश करते वक्त उस वैभव का एहसास भी नहीं कर सका, जिसका कुछ ही क्षण बाद साक्षी बनने वाला था। करीब 200 कदम चलने के बाद श्रीमहाकाल लोक के वैभव की पहली झलक दिखाई दी। दरअसल, यही श्रीमहाकाल लोक का मुख्य प्रवेश द्वार था और हमने जिस द्वार के प्रवेश किया था वह धाम का पिछला हिस्सा यानी प्रवेश द्वार संख्या चार था। 
 श्रीमहाकाल लोक में सनातन संस्कृति को सहेजने और उन्हें भव्यता प्रदान करने का बेहतरीन काम हुआ है। यह श्रीमहाकाल लोक का पहला चरण है और उसकी भव्यता मन को छू जाती है। दो और चरणों पर काम तेजी से चल रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि दो चरणों के पूरा होने के बाद श्रीमहाकाल लोक का वैभव अप्रतिम हो जाएगा। माताजी  बुजुर्ग हैं और यात्रा के कारण हम भी थके हुए थे, इसलिए श्रीमहाकाल लोक के प्रथम चरण के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाए। बीच से ही लौटने के क्रम में भारत माता मंदिर के दर्शन हुए। अगले दिन सुबह करीब 150 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित एक अन्य ज्योतिर्लिंग बाबा ओंकारेश्वर व ममकेश्वर के दर्शन के लिए रवाना होना था, तो हम सभी खाना खाने के बाद जल्दी सो गए। 
(क्रमशः )
श्री महाकाल लोक 


श्री महाकाल परिसर 




श्री महाकाल लोक
 
श्री महाकाल लोक