-कुणाल देव-
जरा सोचिए, दाल में नमक न हो, चाय में चीनी न हो और रसमलाई में रस न हो तो क्या होगा? ऐसे ही दाल में नमक ज्यादा हो, चाय में बेहिसाब चीनी हो और रसमलाई में रस ही रस हो तो क्या होगा? जवाब आप सब जानते हैं- स्वाद खत्म हो जाएगा। जिंदगी भी इन पकवानों की जैसी ही। जब भी कोई तत्व कम या ज्यादा हो जाता है, इसकी रफ्तार गड़बड़ा जाती है। पिछले दिनों कैफे कॉफी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ की आत्महत्या ने न सिर्फ कारपोरेट जगत, बल्कि आम लोगों को भी हिला दिया। यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सिद्धार्थ ने आत्महत्या क्यों की? वह कर्ज में दबा आम किसान नहीं थे। फेल होने से डरने वाले नासमझ छात्र भी नहीं थे। वह तो बड़े अचीवर थे। पिता से मिली पांच लाख की पूंजी को मल्टीनेशनल रेस्तरां चेन में बदल चुके थे। फिर उन्हें किस बात की चिंता थी? किस बात का डर था?
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26 अगस्त 2019 को दैनिक जागरण में प्रकाशित |
गड़बड़ाने न दें जिंदगी का इंग्रीडेंट्स
दरअसल, सिद्धार्थ ही नहीं कोई भी ऐसा तभी करता है, जब उसकी जिदंगी के पकवान का इंग्रीडेंट्स गड़बड़ा जाता है। इंग्रीडेंट्स का आधारभूत तत्व ‘उम्मीद’ अपना आकार बढ़ाता हुआ संघर्ष, समझ और संयम को निष्क्रिय करने लगता है। वह अपना स्वरूप बदलते हुए धीरे-धीरे अव्यावहारिक लक्ष्य, लालच व नासमझ जिद मं’ तब्दली हो जाता है और व्यक्ति को इसका एहसास भी नहीं होता। इस अवस्था में इंसान सार्वभौमिक सत्य से भी दूर होता चला जाता है। वह यह नहीं समझ पाता कि दिन व रात की तरह सफलता और विफलता भी जिंदगी के अनिवार्य तत्व हैं। ऐसा कभी हो नहीं सकता कि जिंदगी में सिर्फ सफलता मिले और ऐसा भी नहीं हो सकता कि जिंदगी में विफलता ही मिलती रहे। इसिलए, जिंदगी के पकवान के इंग्रीडेंट्स को संतुलित रखने की कोशिश करें। उम्मीद बहुत जरूरी हैं, लेकिन उसे इतना भी महत्व न दें कि वे बोझ बन जाए।
विफलताओं की समीक्षा करें, कोशिश जारी रखें
कल्पना कीजिए, अमिताभ बच्चन अॉल इंडिया रेडियो से रिजेक्ट नहीं किए जाते तो महानायक कैसे बनते? केएफसी के संस्थापक कर्नल हारलैंड सांडर्स को 65 साल की उम्र तक सफलता के लिए इंतजार करना पड़ा। चिकेन बनाने की रेसिपी को स्वीकार किए जाने से पहले उन्हें 1009 होटल मालिकों से ना सुनना पड़ा था। मशहूर उपन्यास सीरीज हैरी पॉर्टर की लेखिका जेके रोलिंग को तो जानते ही होंगे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया और 30 वर्ष की उम्र तक तो उन्हें गर्भपात, शादी व तलाक जैसे कई दर्द से गुजरना पड़ा। लेकिन, इसके बाद एक यात्रा के दौरान ट्रेन लेट हुई और वहीं इंतजार करते हुए हैरी पॉटर का आइडिया उनके दिमाग में आया। 35 साल की उम्र तक वह हैरी पॉटर सीरीज के पांच उपन्यास लिखकर अॉथर अॉफ द इयर का खिताब पा चुकी थीं। कहने का मतलब है कि विफलताओं से कभी मत घबराइए। लगातार मिल रही हैं तब भी। उनकी समीक्षा करते रहिए। क्या पता किस विफलता में सफलता का ऐसा सूत्र छिपा हो कि आप अगले ही दिन करियर के फलक पर हों।
खुद से खुद की तुलना कीजिए, दूसरों से नहीं
झारखंड के जमशेदपुर शहर से आप जरूर वाकिफ होंगे। वहां मुझे 2010 से 2017 तक रहने का अवसर मिला। औद्योगिक शहर होने के कारण वहां जिंदगी की रफ्तार भी बड़े महानगरों की तरह तेज है। लोगों के मन में उम्मीदों और अपेक्षाओं का पहाड़ बहुत जल्द ही खड़ा हो जाता है। पड़ोसी की नई कार देख व्यक्ति खुद को बेवजह छोटा महसूस करने लगता है। अभिभावक उम्मीद करने लगते हैं कि पड़ोसी का बेटा बोर्ड परीक्षा में अगर 90 फीसद नंबर लाता है तो मेरे बेटे को इससे कम कतई नहीं लाना चाहिए। उम्मीदों का बोझ इतना बढ़ जाता कि उसे हासिल करने का दबाव कई बार दम लेकर मानता। बोर्ड परीका के बाद छात्रों की आत्महत्या सिलसिला शुरू हो जाता । हालात विकराल होता देख शहर की कुछ संस्थाओं ने इस दिशा में पहल की। अपनी क्लीनिक के साथ-साथ स्कूलों और संस्थानों में काउंसिलिंग शुरू की और आज शहर में आत्महत्या की घटनाएं बेहद कम हो गई हैं। जीवन के संस्थापक सदस्य व काउंसलर महावीर राम का मानना है कि दूसरों से की गई तुलना या प्रतिस्पर्धा अक्सर आपको दुख पहुंचाती है। उम्मीदें पूरी नहीं होने पर मिलने वाली निराशा कई बार हताशा से भी आगे निकल जाती है और आत्महत्या का कारण बनती है। इसलिए, हमेशा लक्ष्य को पाने की कोशिश करें और खुद से खुद की तुलना करें। खुद को आंके कि कल आप कहां थे और आज कहां हैं। यकीन मानिए, आप पाएंगे कि अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं और बेहतर हो रहे हैं।
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