तीन चौथाई: देशकाल: डरो ‘भगवान’, अपने अस्तित्व के लिए डरो! (भाग-4)
दरअसल, व्यवस्था बनती तो है
समाज में स्वस्थ माहौल पैदा करने तथा विकास को गति देने के लिए, लेकिन बंद
कमरों में बनने वाली नीतियां इतनी अव्यावहारिक हो जाती हैं कि यर्थाथ के
धरातल पर उनमें कई छेद पैदा हो जाते हैं। इन्हीं छेदों के माध्यम से
नीतियों और योजनाओं का रिसना शुरू हो जाता है और शत-प्रतिशत लाभ के हकदार
आम जनता के पास लाभ की चूरन-चटनी से ज्यादा कुछ भी नहीं पहुंच पाता।